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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अन्तमें जब श्री गांधीको यह बताया गया कि आज समस्त भारत उनकी पूजा 'सन्त' के रूप में करता है, हजारों भारतीय बच्चोंका नाम 'गांधीदास' रखा जा रहा है और लाखों लोग अपने घरोंमें गांधीजीके चित्र रखकर उनपर नित्य फूलोंकी ताजी मालाएँ चढ़ाते हैं, तो उन्होंने केवल इतना ही कहा :

मेरे खयालसे 'सन्त' शब्दका प्रयोग वर्तमान युग में निषिद्ध माना जाना चाहिए। मनचाहे ढंगसे, हर किसीके लिए इस पवित्र शब्दका प्रयोग सर्वथा अनुचित है—और मेरे लिए तो और भी अनुचित है। मैं तो केवल एक विनीत सत्यशोधक हूँ।[१]

अंग्रेजी समाचारपत्रकी कतरन (एस॰ एन॰ ८९५६) से।
 

१०२. सन्देश : गुजरात विद्यापीठको

[६ फरवरी, १९२४ या उसके पूर्व][२]

जेलसे मुक्ति प्रसन्नताका विषय नहीं है; उससे तो हमें और भी अधिक विनम्र बनना चाहिए। आप लोगोंको पहलेसे अधिक उत्तरदायित्व सँभालना होगा; इसलिए आपको उसकी तैयारी करनी चाहिए और इतना मजबूत बन जाना चाहिए कि समय आनेपर आप उसे वहन कर सकें।

[अंग्रेजीस]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ९–२–१९२४
 

१०३. तार : लाला लाजपतरायको[३]

[पूना
६ फरवरी, १९२४ या उसके पश्चात्]}} धन्यवाद : जबतबबीमार हैं कष्ट न दूँगा। पत्र लिख रहा हूँ।[४]

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८२६४) की फोटो-नकलसे।
  1. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ ४४०-४४।
  2. सन्देश एन्ड्रयूज को मार्फत बुधवारको प्राप्त हुआ था। ९-२-१९२४ से पूर्व बुधवार ६ फरवरीको पड़ा था। गांधीजीकी रिहाईपर एन्ड्रयूजके बयानके लिए देखिए परिशिष्ट ७।
  3. यह लाला लाजपतरायके ६ फरवरी, १९२४ के तारके उत्तर में भेजा गया था, जो इस प्रकार था : "आज प्रातः लाहौर वापस, तबीयत ठीक नहीं, प्रकाशमूका तार कि आप मुझे पूना बुला रहे हैं। तार द्वारा इच्छा सूचित करें।"
  4. देखिए "पत्र : लाला लाजपतरायको", ८-२-१९२४।