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१२३. पत्र : डी॰ वी॰ गोखलेको

सैसून अस्पताल
पूना
२९ फरवरी, १९२४

प्रिय श्री गोखले[१],

मुसलमान न्यासियों और सम्बन्धित हिन्दुओंके झगड़ेको सुलझानेका मैं जो थोड़ा-बहुत प्रयत्न कर रहा हूँ उसका उल्लेख 'केसरी' के एक अनुच्छेदमें देखकर मुझे दुःख हुआ। मैं चाहता हूँ कि यदि हो सके तो आइन्दा आप इस सम्बन्धमें मेरे कामका उल्लेख न करें। मुझे लगता है कि ऐसे प्रचारसे सुलह कराने के सम्बन्धमें मेरी उपयोगिता घट जाती है।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

श्री डी॰ वी॰ गोखले
पूना

अंग्रेजी पत्र ( जी॰ एन॰ ५२१३) की फोटो-नकलसे।
 

१२४. सन्देश : पूनाकी सभाको[२]

पूना
१ मार्च, १९२४

मैं इस सभाकी पूर्ण सफलताकी कामना करता हूँ। यदि हमने पर्याप्त शक्ति जुटा ली होती, तो हम बहुत पहले ही श्री हॉर्निमैनकी वापसी कराने में समर्थ हो गये होते। सरकारने दोहरा अन्याय किया है, पहले उन्हें निर्वासित करके और दूसरे उन्हें वापस आनेकी इजाजत न देकर। लेकिन यह अन्याय वह इसीलिए कर पाई है कि हम कमजोर हैं।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ३-३-१९२४
  1. मराठाके सम्पादक।
  2. यह सभा प्रोफेसर र॰ पु॰ परांजपेकी अध्यक्षता में ब्रिटिश सरकार द्वारा बी॰ जी॰ हॉर्निमेनको पारपत्र देनेसे इनकार करनेके विरोध में की गई थी। हॉर्निमैन १९१९ में निर्वासित किये गये थे। देखिए खण्ड १५। सभामें गांधीजीका सन्देश सी॰ एफ॰ एंड्रयूजने पढ़कर सुनाया था।