पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/२६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३१
पत्र: ग॰ न॰ कानिटकरको

श्रीलंका गया नहीं हूँ; किन्तु लोग कहते हैं कि वह सुन्दर और सुहावनी जगह है। फिर भी इन आगन्तुकोंकी सुविधाका खयाल करके मैंने बम्बईके पास रहनेका ही निश्चय किया है, जिनसे मुझे अकसर सलाह करनी पड़ती है। मैंने एक बार दादा-भाई नौरोजीके मकान में रहनेका निर्णय किया था; और मनमें इस बातकी खुशी थी कि मैंने जिनसे राजनीति सीखी है, मैं उन्हींके मकानमें रहूँगा।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ४-३-१९२४
 

१२२. पत्र : ग॰ न॰ कानिटकरको

पूना
२९ फरवरी, १९२४

प्रिय कानिटकर,

आप तो 'सूत न कपास जुलाहेसे लट्ठम्-लट्ठ' वाली बात कर रहे हैं। मुझे कोई अन्दाज नहीं है कि आत्मकथाका लिखना कब शुरू होगा। यदि वह कभी प्रकाशित हुई, तो जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, आपको उसके अनुवादका अधिकार होगा। परन्तु बात ऐसी है कि अन्तिम निर्णय तो काका या आनन्दस्वामीके[१] ही हाथमें है। इसलिए यदि आप पहलेसे ही सावधानी बरतना चाहें तो कृपया इनमें से किसीको या दोनोंको लिख दीजिए।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

गजानन न॰ कानिटकर
प्रबन्धक न्यासी, एस॰ आर॰ पाठशाला
चिंचवड़

मूल अंग्रेजी पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ९५६) से।
सौजन्य : ग॰ न॰ कानिटकर
  1. काका कालेलकर और आनन्दस्वामी यंग इंडिया और नवजीवनसे सम्बन्धित थे।