- ३. अहिंसा-पालनके विषयमें पूरा आश्वासन—अर्थात् प्रकाशनके लिए एक दस्तावेज तैयार किया जाये जिसपर सभी प्रमुख नेताओंके हस्ताक्षर हों या फिर वह दस्तावेज शि॰ गु॰ प्र॰ समितिकी ओरसे हो, और उसमें उन सब तरीकोंका ऐसा विवरण हो जिससे अहिंसा के सभी फलितार्थ स्पष्ट हो जायें। 'अहिंसा' शब्दसे मेरा आशय यह नहीं है कि उक्त दस्तावेजमें अहिंसाको सिखोंका सर्वोच्च धर्म- सिद्धान्त मानना होगा। मैं जानता हूँ कि ऐसा नहीं है। लेकिन में यह मान लेता हूँ कि जहाँतक इस गुरुद्वारा आन्दोलनका सम्बन्ध है उनकी कार्य-प्रणाली अहिंसात्मक होगी, यानी अकाली उन सभी लोगोंके प्रति मनसा, वाचा कर्मणा अहिंसात्मक रहेंगे, जो इस आन्दोलनके विरोधी माने जाते हों—फिर चाहे वे अंग्रेज या कोई अन्य सरकारी अधिकारी हों या जनताके किसी भी वर्ग या सम्प्रदायके लोग। मैं सत्यके पूर्ण पालनको अहिंसाकी किसी भी योजनाका, चाहे वह स्थायी हो या अस्थायी और चाहे वह गिने-चुने लोगोंके लिए और किसी स्थानविशेषके लिए हो, अभिन्न अंग मानता हूँ। इसलिए प्रचलित अर्थ में यहाँ कूटनीतिकी गुंजाइश नहीं है और सामान्यतया प्रचलित इस विचारका भी पूर्ण निषेध है कि विरोधियोंके सम्बन्धमें छलपूर्ण तरीके बरते जा सकते हैं। इससे स्पष्ट है कि इसमें कोई गोपनीयता नहीं रहेगी।
- ४. यह आन्दोलन न तो हिन्दू विरोधी है और न किसी अन्य जाति या धर्मका विरोधी।
- ५. शि॰ गु॰ प्र॰ समितिकी सिख राज्य स्थापित करनेकी कोई इच्छा नहीं है और वस्तुतः समिति केवल एक धार्मिक संस्था है; और इस रूपमें उसका कोई धर्म निरपेक्ष उद्देश्य या इरादा नहीं हो सकता।
- नाभाके महाराजको पुनः गद्दीपर बिठाने के सम्बन्धमें :
मेरी रायमें सच्चाई चाहे कुछ भी हो, महाराजने अपने लेखों द्वारा अपने शुभ-चिन्तकों के लिए यह लगभग असम्भव कर दिया है कि वे उनको फिर गद्दी दिलानेका कोई प्रभावशाली आन्दोलन कर सकें। फिर भी यदि वे इस आशयका एक सार्वजनिक वक्तव्य दें कि ये सभी लेख उनसे लगभग जबरदस्ती लिखाये गये हैं और वे स्वयं इस बात के लिए तैयार और उत्सुक हैं कि उनके विरुद्ध सारे तथ्य प्रकाशित किये जायें; और यदि वे आन्दोलनके सभी परिणामोंको भुगतने के लिए अर्थात् अधिकारोंसे, सालाना राज्याधिकार वृत्ति आदिसे वंचित होने के लिए भी तैयार हैं और दबावके सम्बन्धमें उनके सभी आरोप साबित किये जा सकते हैं तो एक प्रभावकारी आन्दोलन चलाया जा सकता है और वह सफल भी हो सकता है।
कुछ भी हो जब महाराज उक्त प्रकारकी घोषणा कर दें तो आन्दोलन पूरे भारतमें किया जाना चाहिए। अकालियोंको तो केवल धर्म-परिपालनमें मदद देनी चाहिए।
मो॰ क॰ गांधी
- अंग्रेजी प्रति (जी॰ एन॰ ३७६६ और ३७६७) की फोटो-नकलसे।