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अकालियोंको सलाह

और इस अतुलनीय वीरताकी सर्वत्र प्रशंसा होगी। लेकिन मुझे खेदपूर्वक कहना पड़ेगा कि इतिहास इसे अहिंसापूर्ण कार्य नहीं मान सकता। यह प्रस्तावित कार्रवाई सविनय अवज्ञा कही जा सकती है; परन्तु वास्तवमें यह सविनय अवज्ञा होगी नहीं, क्योंकि सविनय अवज्ञा उन आदेशोंका पूरी तरह पालन करना है, जो एक सत्याग्रहीको उन प्राथमिक आदेशोंके उल्लंघन के दण्डस्वरूप दिये जाते हैं और जिनका पालन वह अपनी अन्तरात्मा के विरुद्ध मानता है। परन्तु अवज्ञा सविनय तभी कही जा सकती है जब छोटे या बड़े सभी आदेशोंका पालन पूरी तरह किया जाये जबकि बड़े दण्डोंको आमन्त्रित करनेके लिए छोटे आदेशोंकी अवहेलना सविनय नहीं बल्कि उदण्डतापूर्ण है; और इसलिए हिंसापूर्ण है। सत्याग्रहीका इस बातमें जीवन्त विश्वास होना चाहिए कि कष्ट सहन और धैर्यकी भावनासे अन्तमें सफलता प्राप्त होकर ही रहेगी। इसलिए असीम धैर्य तो उसका विशिष्ट चिह्न माना ही जायेगा।

अब हम यह सिद्धान्त इस प्रस्तावित कदमपर लागू करके देखें। गोलियाँ बरसाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्यसे निर्वासन या कारावासके आदेशको न माननेका अर्थ मध्यवर्ती दण्डों, तिल-तिल कष्टों और लम्बे संघर्षकी सम्भावनाओंसे बचनेकी कोशिश करना है। ऐसी कोशिशकी सविनय अवज्ञामें गुंजाइश नहीं है; इससे तो विरोधियोंको यह बहाना मिल जायेगा कि वे अहिंसात्मक नहीं हैं। स्वाभाविक कार्यविधि यह होगी कि निर्वासनकी आज्ञाका, जब उसके साथ शरीर बलका प्रयोग भी हो, फिर चाहे वह कितना ही कम क्यों न हो, पालन किया जाये। इसलिए यदि कोई कम उम्र युवक भी जिसे उचित अधिकार प्राप्त हो, निर्वासनकी आज्ञापर अमल करानेके लिए आये तो ५०० लोग नम्रतापूर्वक और प्रसन्नतापूर्वक उस छोटे निर्वासन अधिकारीके साथ राज्यसे निकल जाने के लिए कर्त्तव्यबद्ध होंगे और सम्भव है कि वे ५०० लोग अपनी वीरतापूर्ण सहनशीलतासे उसे अपना मित्र बना लें। ये ५०० लोग एक बार सीमासे बाहर कर दिये जानेपर वापस लौटने के और उसी तरह के बरताव या उससे भी बुरे बरतावके हकदार हैं। नम्रतापूर्वक कष्ट सहन करनेके पीछे ऐसा विचार है कि उससे अन्तमें कठोरसे-कठोर हृदय भी पिघले बिना नहीं रहेगा। इसके अतिरिक्त इससे अवज्ञामें सक्रिय या निष्क्रिय हिंसाका लेश भी नहीं बच रहता।

मैं इस प्रस्तावित कदमका और भी विश्लेषण करना चाहता हूँ। पूरे जत्थे के लोग एक दूसरेका हाथ पकड़कर खड़े हों, इसका अर्थ यदि निष्क्रिय हिंसा नहीं है तो और क्या? यह स्पष्ट है कि ऐसी मजबूत पंक्तिको एक आदमी नहीं तोड़ सकता, जब कि अहिंसा के सिद्धान्तमें यह बात पहले ही मान ली गई है कि प्रतिपक्षीका हिंसापूर्ण कदम २०,००० अहिंसक मनुष्यों को भी पीछे हटाने के लिए काफी हो सकता है।

इसलिए यदि समिति अहिंसा के सभी फलितार्थोंको स्वीकार करती है, तो मेरी यह निश्चित राय है कि अधिकारियोंसे टक्कर होनेपर जत्थेको कार्य करनेके जो निर्देश दिये जा चुके हैं उनमें मैंने जो कुछ ऊपर कहा है उसके अनुसार फेरफार कर दिया जाये। उस हालत में इन दो बातों में से कोई एक बात हो सकती है, ये ५०० लोग या तो निर्वासित कर दिये जायेंगे या गिरफ्तार हो जायेंगे। लेकिन दोनों ही हालतों में