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अकालियोंको सलाह

बताये गये ढंगसे घोषणा कर दी जाये तो उससे किसी अन्य व्यक्तिके लिए अधिकारियोंसे गतिरोध दूर करनेकी दृष्टिसे बातचीत करनेका रास्ता खुल जायेगा।

गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन

गुरुद्वारा आन्दोलनके सम्बन्धमें मुझसे यह पूछा गया है कि पूर्वोक्त टिप्पणियों में संक्षेपमें बताई गई सीधी कार्रवाईसे पहले कौन-सा क्या तरीका अपनाया जाना चाहिए। पहली बात तो यह है कि गुरुद्वारोंके प्रबन्धकी अवस्था उदाहरणार्थं उनमें रहनेवालों का विवरण आदि पूरी तरह और सार्वजनिक रूपसे बता दिया जाये, अथवा समितिकी[१] स्थिति स्पष्ट करते हुए अधिकारियोंको नोटिस दे दिया जाये और उनसे समितिके अधिकार क्षेत्र और नियन्त्रणको मान लेने के लिए कहा जाये और उन्हें यह भी सूचना दी जाये कि यदि वे समितिके आधिपत्यपर आपत्ति करना चाहते हैं तो समिति मामलेपर पंच निर्णय के लिए तैयार है। समितिकी ओरसे पंच या पंचोंके नाम नोटिस दिये जाने चाहिए और यदि अधिकारी नोटिसकी उपेक्षाको या पंच-निर्णय के सुझावको मानने से इनकार करें तो समिति सीधी कार्रवाई करनेके लिए स्वतन्त्र होगी।

शि॰ गु॰ प्र॰ समितिके अधिकारमें जो गुरुद्वारे पहलेसे ही हैं उनके सम्बन्धमे सत्य और न्यायकी दृष्टिसे मुझे पूरा विश्वास है कि यदि अधिकारच्युत व्यक्तियों को शि॰ गु॰ प्र॰ समितिके अधिकारपर कोई आपत्ति है तो समितिको मामलेपर फिर विचार करने के लिए और उसपर पंच निर्णय स्वीकार करनेके लिए तैयार हो जाना चाहिए। लेकिन मैं मानता हूँ कि अभी फिलहाल जब कि सरकार समितिको हानि पहुँचाने की और हर तरहसे उसकी कार्रवाईमें दखल देनेकी पूरी कोशिश कर रही है ऐसी कोई सार्वजनिक घोषणा करना समितिके हितोंके लिए घातक और बाधक होगा। जो गुरुद्वारे ऐतिहासिक बताये जाते हैं उनके सम्बन्धमें जहाँतक मैं सोच सकता हूँ समितिसे सिर्फ यही करनेकी आशा की जा सकती है कि वह उनकी ऐतिहासिक प्राचीनता सिद्ध कर दे। और यदि इस सम्बन्ध में पंचोंका समाधान हो जाये तो उनपर समितिका अधिकार बना रहना चाहिए तथा अन्य किसी भी बातको लेकर किसी सबूत की जरूरत नहीं समझी जानी चाहिए।[२]

मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी प्रति (जी॰ एन॰ ३७६९) की फोटो-नकलसे।
  1. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति।
  2. साधन-सूत्र में इसके आगे एक अनुच्छेद है जो जी॰ एन॰ ३७६८ का अंश है। देखिए अगला शीर्षक।