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१३८. भेंट : एसोसिएटेड प्रेसके प्रतिनिधिसे[१]

पूना
[९ मार्च, १९२४][२]

अकाली शिष्टमण्डलसे मेरी लम्बी और सौजन्यपूर्ण बातचीत हुई। बातचीत के दौरान मैंने उन्हें कई विचाराधीन विषयोंपर अपनी राय दी। जिन विषयोंपर हमारी बातचीत हुई या मैंने उन्हें जो राय दी उन सबको प्रकट कर देनेकी जनता मुझसे आशा न करे। इतना मैं अवश्य कह सकता हूँ कि अकाली मित्रोंने मुझे बताया कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिने मेरे पत्रके प्रति उदासीनता नहीं दिखाई है और उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया कि वर्त्तमान परिस्थितियोंमें जितना ध्यान दिया जा सकता था उसने उतना ध्यान दिया है। दुर्भाग्यसे समितिने मेरा पत्र अखबारोंमें इतनी देरसे देखा कि उसने इस विषय में जो कुछ किया है उससे अधिक करना सम्भव नहीं है।[३] मेरे मित्रोंने मुझे बताया कि पंजाबमें सामान्यतः यह भ्रम फैला हुआ है कि ननकानाकी दुःखद घटना के बाद मैंने राय दी थी कि गुरुद्वारा आन्दोलन जबतक स्वराज्य प्राप्त न हो तबतक स्थगित कर दिया जाना चाहिए और मेरे हालके पत्र में वही राय फिर दुहराई गई है। मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ है। उक्त राय मैंने कभी व्यक्त नहीं की। इसकी सत्यता उस समयके लेखों और भाषणोंसे अच्छी तरहसे सिद्ध की जा सकती है; मेरे हालके पत्रमें[४] भी यह राय नहीं दी गई थी कि जो शहीदी जत्था रवाना होनेवाला है उसे बिलकुल रोक दिया जाये, बल्कि यह राय दी गई है कि जबतक गैर-सिख मित्रोंसे परामर्श न कर लिया जाये और पूरा आत्मनिरीक्षण और चिन्तन न कर लिया जाये तबतक उसका भेजना स्थगित कर दिया जाये।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ११-३-१९२४
  1. गांधीजीने यह वक्तव्य एसोसिएटेड प्रसके प्रतिनिधिको दिया था जो अकालियोंके कार्योंके सम्बन्धमें उनके और सरदार मंगलसिंहके नेतृत्व में आये हुए शिष्टमण्डलके बीच हफ्ते भर की बातचीतका परिणाम जाननेके लिए उनसे मिला था।
  2. इस शोकके कुछ हिस्से जी॰ एन॰ ३७६८ और जी॰ एन॰ ३७६९ में उपलब्ध हैं जहाँ यह तारीख दी हुई।
  3. इसके आगेका भाग ९ मार्चके हस्तलिखित व हस्ताक्षरित मसविदे (जी॰ एन॰ ३७६८) में उपलब्ध है।
  4. देखिए "खुली चिठ्ठी : अकालियोंके नाम", २५-२-१९२४