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वक्तव्य : पोट्टी श्रीरामुलुके अनशनपर

अबतक कोई भी आन्दोलन ऐसा नहीं हुआ जिसमें करोड़ों लोगोंने भाग लिया हो और फिर भी इतनी कम खून-खराबी या जनता के सर्व-साधारण जीवनक्रममें इतनी कम बाधा पड़ी हो।[१]

मैं नहीं जानता कि आप जो कुछ चाहती थीं वह मैं लिख पाया हूँ या नहीं। मैंने सब बातें यथासम्भव संक्षिप्त रूपमें देनेकी कोशिश की है।

कृपया कर्नल मैडॉकको बतायें कि मैंने अस्पतालसे दुःखी मनसे विदा ली थी। उन्होंने मेरी जो प्रेमपूर्ण देखभाल और सेवा की उसे मैं हमेशा याद रखूँगा। उन्होंने मुझे जो चित्र उपहारमें दिया है वह मुझे पसन्द है। मेरी हार्दिक कामना है कि आपकी समुद्र-यात्रा और देशमें आपका निवास सुखद हो। जब भी आपको ध्यान आ जाये और लिखनेका समय हो तो मैं आपकी या आपके पतिकी लिखी एकाध पंक्तिको भी बहुमूल्य मानूँगा। मैं जिस जगह रखा गया हूँ वह बहुत ही सुन्दर है। समुद्र मेरे सामने लहरा रहा है। बँगलेके चारों ओर नारियलके पेड़ हैं। रातको मौसम बहुत ठंडा रहता है और बहुधा सारे दिन हलकी ठंडी हवा बहती रहती है। श्री एन्ड्रयूज और मैं जुहू के सुरम्य रेतीले किनारेपर लगभग आध घंटा टहलने जाते हैं। मेरा खयाल है कि मेरी कमजोरी रोज-ब-रोज कम होती चली जायेगी।

समादरपूर्वक,

हृदयसे आपका,

[पुनश्च :]

मेरा स्थायी पता साबरमती, अहमदाबाद है।

श्रीमती मैडॉक
पूना

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८४८८) की फोटो-नकलसे।
 

१४६. वक्तव्य : पोट्टी श्रीरामुलुके अनशनपर

बम्बई
१५ मार्च, १९२४

श्री श्रीरामुलु एक अपरिचित और गरीब कांग्रेसी हैं, जो मानव-जातिके सेवक हैं और नेलौरमें काम कर रहे हैं। वे उस स्थानके हरिजनोंके लिए अकेले ही उद्योग करते रहे हैं। एक समय था जब नेलौरसे अस्पृश्यता निवारण तथा अन्य प्रकार के सामाजिक कार्य के सम्बन्ध में बड़ी आशा रखी जाती थी। नेलौरके पास एक आश्रम बनाया गया

  1. सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजने इस पत्रका यह अंश अपने इस वक्तव्यके साथ २४ अप्रैल, १९२४ के मैनचेस्टर गार्जियनमें भेजा था कि इंग्लैंडमें अभी इस सत्यको नहीं समझा गया है कि श्री गांधीका उद्देश्य केवल संशोधित कौंसिलोंमें प्रवेश से इनकार करना नहीं, वरन् कहीं ज्यादा बुनियादी क्रान्ति करना है।