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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

था; परन्तु विभिन्न कारणोंसे कार्यकी गति रुक गई। यद्यपि वे बहुत वृद्ध हो गये हैं, फिर भी देशभक्त कोंडा वेंकटप्पैया इन कार्योंके प्राण थे और अब भी हैं; इसी जगह श्री श्रीरामुलु चुपचाप अध्यवसायपूर्वक अस्पृश्यता के मूलोच्छेदके लिए काम कर रहे हैं।

वे हरिजनों के लिए एक मन्दिर खुलवानेकी कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कुछ दिन पूर्व मुझसे पूछा था कि इस मन्दिरको खुलवानेके पक्षमें लोकमत जगानेके लिए यदि अन्य सब प्रयत्न व्यर्थ हो जायें तो क्या वे अनशन कर सकते हैं और मैंने इसपर उन्हें अपनी सहमति भेज दी थी।

अब वहाँ हलचल मची हुई है। परन्तु कुछ लोगोंने मुझसे कहा है कि मैं श्री श्रीरामुलुसे अपना अनशन मुल्तवी करनेके लिए कहूँ ताकि इस विषयकी कानूनी कठिनाइयाँ दूर की जा सकें; मुझे कानूनी कठिनाइयोंके बारेमें कुछ मालूम नहीं। मैं उन्हें यह राय नहीं दे पाया हूँ।

चूंकि मैं चाहता हूँ कि आडम्बरसे दूर रहकर मानव-जातिकी सेवा करनेवाला एक व्यक्ति जनताकी जानकारी और समर्थनके अभाव में मर न जाये, इसलिए यदि समस्त भारत के नहीं तो दक्षिणके पत्रकारोंके हितकी दृष्टिसे जरूरी है कि वे मामले की सचाईका पता लगायें और में जो कुछ कहता हूँ, यदि वह तथ्योंसे प्रमाणित हो जाये, तो उसे जनता के सामने प्रकट करके विरोधी पक्षको शर्मिन्दा करें ताकि वह उचित कदम उठायें और इस कार्यकर्त्ताके अमूल्य प्राणोंकी रक्षा हो।

अंग्रेजी प्रति (११७ ए) की फोटो नकलसे।
 

१४७. पत्र : इविन बैकटेको

पोस्ट अन्धेरी
१५ मार्च, १९२४

प्रिय मित्र,

आपका ८ फरवरीका पत्र[१] पाकर सचमच बड़ी खुशी हुई।

यह सोचकर मुझे खुशी होती है कि मैं अपने देशमें जो एक मामूली-सा काम कर रहा हूँ उसे यूरोपके लोग और खासकर वे लोग समझते और सराहते हैं जो मेरे ही देशवासियोंकी भाँति अत्याचार सह रहे हैं. . .यद्यपि मेरा कार्य-क्षेत्र भारततक ही

  1. इर्विन बैकटेके गांधीजीको लिखे इस पत्रका आशय था कि भारतसे दूर दूसरे देशोंके लोग भी उनके कार्य में विश्वास रखते हैं। गांधीजी मानव-समाजके लिए जो कुछ कर रहे हैं, यद्यपि यूरोप और अमेरिकाके लोगोंको उसकी स्पष्ट अनुभूति नहीं हो रही है, फिर भी अब सारा संसार उनके माध्यम से भारत के इस सन्देशको सुनने लगा है। उन्होंने यह भी लिखा था कि वे वर्षोंसे भारतीय धर्म और दर्शनका अध्ययन कर रहे हैं और रवीन्द्रनाथ ठाकुरके इस कथन से सहमत है कि हमारे युगकी सबसे बड़ी घटना पूर्व और पश्चिमका मिलन है। सत्य एक और अविच्छिन्न है। उपनिषद्, बुद्ध या ईसाके सत्य अलग-अलग नहीं हो सकते और गांधीजी समस्त सत्योंके समन्वयकी साकार मूर्ति हैं। (एस॰ एन॰ ८३०३)