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१४९. पत्र : एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

पोस्ट अन्धेरी
१५ मार्च, १९२४

प्रिय हेनरी,

तुम्हारा पत्र मिला। साथमें केनियाके सम्बन्धमें लिखी तुम्हारी टिप्पणी और समाचारपत्रकी कतरनें[१] भी मिलीं। सामान्य काम-काज करनेकी पर्याप्त शक्ति आते ही मैं तुम्हारी टिप्पणी पढूँगा। इस समय मुझमें जो थोड़ी-बहुत शक्ति है, उसे मैं सिर्फ उन्हीं बातोंपर लगाता हूँ जिनपर मुझे अपने विचार अविलम्ब व्यक्त करने चाहिए। आशा है, पूनासे भेजा मेरा पत्र[२] मिल गया होगा। फिलहाल मैं अन्धेरीके समीप श्री नरोत्तमके[३] बँगलेमें रह रहा हूँ। यह बँगला अत्यन्त रमणीय स्थानपर है। सामने समुद्र है और उसकी लहरें इसकी दीवारोंसे टकराती रहती हैं।

श्री एन्ड्रयूज मेरे साथ रह रहे हैं। उन्हें कविगुरुने खास तौरसे मेरी देख-भाल करने और मन बहलाने के लिए भेजा है। मुझे रोज ३० मिनट टहलनेकी इजाजत है। मैं शामको टहलता हूँ।

तुम सबको स्नेह

हृदयसे तुम्हारा,

श्री हेनरी एस॰ एल॰ पोलक
४७-४८, डेन्स इन हाउस
२०५ स्ट्रैंड
लन्दन, डब्ल्यू॰ सी॰ २

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८४९५) की फोटो-नकलसे।
  1. उपलब्ध नहीं है।
  2. उपलब्ध नहीं है।
  3. नरोत्तम मोरारजी, सिन्धिया स्टीम नेवीगेशन कम्पनीके एजेन्ट।