१५४. पत्र : एस॰ ए॰ ब्रेलवीको
पोस्ट अन्धेरी
१५ मार्च, १९२४
प्रिय श्री ब्रेलवी,
आपका पत्र मिला, साथमें प्रोफेसर के॰ टी॰ शाह[१] कृत उपन्यासकी रूपरेखा भी। समय मिलते ही मैं इसे पढ़ जाऊँगा और आपको लिख भेजूँगा कि मुझे पूरी पाण्डुलिपिकी जरूरत है या नहीं।
हृदयसे आपका,
श्री एस॰ ए॰ ब्रेलवी
'बॉम्बे क्रॉनिकल' ऑफिस
फोर्ट
बम्बई
- अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५०४) की फोटो-नकल से।
१५५. पत्र: महेन्द्र प्रतापको[२]
पोस्ट अन्धेरी
१५ मार्च, १९२४
प्रिय मित्र,
आपका पत्र पाकर बहुत प्रसन्नता हुई। मैं जब प्रेम विद्यालय गया था, तब मेरा खयाल है, भाई कोतवालने आपके सम्बन्धमें मुझसे बातचीत की थी। यद्यपि यह सच है कि हमें प्रकृतिमें अच्छी और बुरी दोनों तरहकी शक्तियाँ पूरे जोरोंपर काम करती दिखाई देती हैं, किन्तु मेरा निश्चित विश्वास है कि इस शाश्वत द्वन्द्वसे ऊपर उठना तथा चित्तकी समवृत्ति प्राप्त करना मनुष्यका अपना विशिष्ट अधिकार है। और इसे प्राप्त करनेका एकमात्र उपाय है सत्यबल, दूसरे शब्दों में प्रेमबल अथवा आत्मिक बलपर पूर्णतया आचरण करना। मैं यह बात तर्क द्वारा सिद्ध करके बताऊँ,