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पत्र : अब्बास तैयबजीको

इसकी अपेक्षा तो आप मुझसे नहीं ही करेंगे। इस सम्बन्धमें मैं केवल अपने दीर्घकालीन अनुभवसे उत्पन्न दृढ़ विश्वासको ही आपके सामने रख सकता हूँ। इस सुदीर्घ अनुभवके दौरान मुझे स्मरण नहीं आता कि मेरे सामने एक भी ऐसा अवसर आया हो, जब किसी समस्या के समाधानके लिए सत्यबलका सहारा लेनेपर मुझे पूरी सफलता न मिली हो। निःसन्देह इसके लिए धैर्य, विनम्रता और इसी तरहके अन्य गुणोंका विकास करना जरूरी होता है।

हृदयसे आपका,

श्री एम॰ प्रताप
बाग बाबर
काबुल

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८४९९) की फोटो नकल से।
 

१५६. पत्र : अब्बास तैयबजीको[१]

पोस्ट अन्धेरी
१५ मार्च, १९२४

मेरे जिगरी दोस्त,

खुश रहो, मस्त रहो, गमको धरो ताक पै दोस्त! किसी बातकी फिक्र क्यों करें? आपकी चिट्ठी[२] तो आँसू ढालती नज़र आ रही है। यों कुछ न होनेसे यह भी बेहतर है। आप चाहते हैं कि मैं किसी तरकीबसे आपका रंज काफूर कर दूँ। और आप मेरा हौसला बढ़ानेके लिए जंजीबारके अपने अज़ीज़की शानदार मिसाल भी पेश करते हैं। मगर एक फर्क है; उनके सामने था आबनूसी रंगका एक छोकरा जो हकीकत में छोकरा ही था जब कि मेरा पाला पड़ा है एक गोरे-सफेद दाढ़ीवाले जईफ लड़केसे। एपेंडिसाइटिसका ऑपरेशन करा लेना इसके मुकाबिले एक आसान काम था। मैं आपके सामने कलका लड़का ठहरा—भला मैं ऐसे नाजुक कामको कैसे अन्जाम दे सकूंगा। बहरहाल जब मिलेंगे तब इसकी कोशिश की जायेगी। शायद आपको खबर नहीं है कि मैं इन दिनों हाथमें बाकायदा अफगानी सोटा लिये रहता हूँ इसलिए जरा बचे रहिएगा। मेरे साथ टिकनेकी इजाजत सिर्फ मरीजोंको ही मिलती है। चूंकि आप मैलनकोलियाके[३] मरीज़ हैं इसलिए आपको इजाज़त दी जाती है कि आप अपनी सहूलियतके मुताबिक जब चाहें तब तशरीफ लायें। अलबत्ता ऊपर कोई कमरा

  1. अब्बास तैयबजी (१८५३-१९३६ ); एक समय वड़ौदा उच्च न्यायालयके न्यायाधीश; गुजरातके राष्ट्रवादी मुसलमान वे पंजाबके उपद्रवोंकी जाँच के लिए कांग्रेस द्वारा नियुक्त समिति सदस्य भी थे।
  2. १३ मार्चका पत्र।
  3. मैलनकोलिया, विषाद रोग।