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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मान लिया था। संघ सरकारने गोखलेको कोई और निर्योग्यता लादनेवाला कानून पास न करनेका जो आश्वासन[१] दिया था उसकी याद उसे दिलायें। १९१४ के[२] समझौतेकी याद भी दिलायें। तबसे स्थानीय भारतीयोंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसके लिए उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाये जैसा सरकार करने जा रही है। वर्ग-क्षेत्र विधेयकको स्वीकार करना अपने राजनीतिक और नागरिक जीवनसे हाथ धो लेना है। मुझे विश्वास है कि आपका प्रभावशाली वक्तृत्व विरोधी पक्षको निरस्त्र कर देगा और आपकी उपस्थितिके फलस्वरूप आपके देशभाइयोंके कष्ट कुछ कम हो सकेंगे।

अंग्रेजी समाचारपत्रकी कतरन (एस॰ एन॰ ८५३५) की माइक्रोफिल्मसे।
 

१६१. पत्र : जे॰ पी॰ भंसालीको

पोस्ट अन्धेरी
१६ मार्च, १९२४

प्रिय भंसाली,

आपका पत्र पाकर मुझे कितनी प्रसन्नता हुई, क्या बताऊँ! मैं पत्रका अधिकांश पढ़ गया हूँ। आपने पत्रके साथ जो कतरनें भेजी हैं, उन्हें मैं अभीतक नहीं पढ़ पाया हूँ। मैं अपने जेलके अनुभव लिखना चाहता हूँ। आपकी टिप्पणियाँ[३] बड़े कामकी सिद्ध होंगी। मैं संशोधन-परिवर्धन या यह आवश्यक न हो तो सहमति-मात्र के लिए उन्हें जयरामदासके पास भेजनेका इरादा कर रहा हूँ। आप सब लोगोंसे बिलकुल अलग रहने के कारण कुछ बातों में मेरा कथन एकांगी होगा ही। इसलिए आपकी टिप्पणियाँ, जैसा कि मैंने कहा है, कामकी सिद्ध होंगी।

मैं स्वीकार करता हूँ कि पहले मेरे मनमें ऐसा कोई खयाल नहीं था कि अपने अनुभव लिखते समय मैं आपसे अथवा जयरामदाससे सलाह लूँगा। मेरे मस्तिष्कमें कोई भी बात ठोस रूप ग्रहण नहीं कर पाई है; क्योंकि मेरा मस्तिष्क इस समय ऐसी बातोंमें ही लगा हुआ है, जिनके बारेमें मुझे अपनी राय देनी ही चाहिए। बहरहाल, आपका पत्र बहुत उपयुक्त समयपर आया है। आपने अपने विषयमें कुछ भी नहीं कहा। कृपया अपने बारेमें भी एक पंक्ति अवश्य लिखें। शायद ही कोई दिन ऐसा

  1. १९१२ में उनको दक्षिण आफ्रिका यात्राके समय; देखिए खण्ड ११।
  2. यह समझौता २२ जनवरी, १९१४ को गांधीजी और जनरल स्मट्सके बीच हुआ था। इसमें सरकारने भारतीयोंके सम्बन्धमें कोई कानून बनानेसे पहले भारतीयोंसे परामर्श करनेके सिद्धान्तको स्वीकार किया था। देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ३२४-३३।
  3. ये उपलब्ध नहीं हैं। तथापि सम्भव है कि ये टिप्पणियाँ भंसालीके जेलके अपने अनुभवोंसे सम्बन्धित हों। देखिए अगला शीर्षक भी।