पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/३१६

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१६३. पत्र : ए॰ डी॰ स्कीन कैटलिंगको

पोस्ट अन्धेरी
१६ मार्च, १९२४

प्रिय श्री कैटलिंग,

श्री पणिक्करकी मार्फत भेजी आपकी पर्चीके लिए धन्यवाद।

बुधवारको आपने जो समय बताया है, उस समय आपसे और श्री अय्यरसे मिलकर मुझे बहुत प्रसन्नता होगी।

हृदयसे आपका,

श्री ए॰ डी॰ स्कीन कॅटलिंग
मेसर्स रायटर लिमिटेड
बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५०९) की फोटो-नकलसे।
 

१६४. पत्र : डी॰ हनुमन्तरावको

पोस्ट अन्धेरी
१६ मार्च, १९२४

प्रिय हनुमन्तराव,

तुम्हारा पत्र मिला। पत्र लम्बा होते हुए भी रंजक है। आइन्दा तुम्हें अपने लम्बे पत्रों के लिए क्षमा माँगनेकी कोई जरूरत नहीं है, तुम कभी बेकारकी बातें नहीं लिखते। हममें से एकान्त और अरक्षित स्थानोंमें रहनेवाले उन लोगोंके लिए जो अपनी रक्षा के लिए शस्त्र बलपर नहीं बल्कि ईश्वरकी अनुकम्पापर ही विश्वास करते हैं, एकमात्र रास्ता यही है कि वे अपने पास जहाँतक बन पड़े मूल्यवान चीजें यथासम्भव कम रखें, चाहे वे पैसोंके रूपमें हों अथवा अन्य किसी रूपमें। हमें चाहिए कि आसपासके उजड्डु लोगों के साथ भी मंत्री भाव बनाये रखें। साबरमती में ऐसा ही प्रयास चल रहा है।

भारत के विभिन्न प्रान्तोंमें साबरमती जैसे ही आश्रमोंकी स्थापनाके तुम्हारे सुझावको मैं पसन्द करता हूँ। मैं वैसा करना तो जरूर चाहूँगा, लेकिन चाहने भरसे तो उनकी स्थापना नहीं की जा सकती। उसके लिए हमें ठीक ढंगके आदमियोंकी जरूरत है और मेरी नजर में ऐसे लोग हैं नहीं। तुमने एक आश्रमकी स्थापना की है और उसे चलाने- की कठिनाइयों को भी तुम समझते हो। तुम जानते हो, हमारा दूसरा आश्रम वर्धा में है, जिसका संचालन विनोबा करते हैं। विनोबासे तो तुम परिचित ही हो। उसकी