सके। मैं खुद ही टूट चुका था, इसलिए मैंने, जैसा चल रहा था, चलने दिया। प्राकृतिक उपचारकी ऐसी परिसमाप्ति मेरे जीवनकी एक दुःखद घटना है। यह नहीं कि मेरी इसपर से श्रद्धा ही उठ गई है बल्कि मैं अपना आत्मविश्वास ही खो बैठा हूँ। उस विश्वासको पुनः पाने में मेरे सहायक बनो। तुमने देख लिया होगा कि मगनलालको मेरी सूक्ष्मसे-सूक्ष्म बातकी कितनी अच्छी पकड़ है। उसने मुझसे कुछ जिक किये बिना शिवभाईको तुम्हारे पास भेज दिया है; क्योंकि हमारी दुर्बलताका मेरे ही जितना भान उसे भी है। इसलिए हम लोग ध्यानपूर्वक तुम्हारी प्रगतिको देखते रहेंगे और वह होगा अत्यधिक सहानुभूति के साथ। मुझे उम्मीद है कि इस सम्बन्धमें जब भी तुम्हारे मन में बताने योग्य कोई बात उठे, तुम उसे मुझे निस्संकोच लिख भेजोगे।
हृदयसे तुम्हारा,
सत्याग्रह आश्रम
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५०८) की माइक्रोफिल्म तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५११३ से।
१६५. पत्र : सरदार मंगलसिंहको
पोस्ट अन्धेरी
१६ मार्च, १९२४
यह पत्र आपको श्री पणिक्करका परिचय देनेके लिए लिख रहा हूँ। वे प्रोफेसर गिडवानीकी जगह काम करेंगे। श्री पणिक्कर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटीके एम॰ ए॰ हैं और वे प्रथम श्रेणीमें ऑनर्सके साथ उत्तीर्ण हुए थे। वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्राध्यापक थे; और फिर मेरी गिरफ्तारी के बाद असहयोगमें शामिल हो गये थे। उन्होंने श्री प्रकाशम् के साथ कुछ समयतक 'स्वराज्य' कार्यालय में भी काम किया है। अगर आप चाहें तो वे 'ऑनवर्ड' का भी सम्पादन कर देंगे। मैंने श्री पणिक्करको, हमारे बीच जो बातचीत हुई थी, उसके सारसे अवगत करा दिया है। मेरा विश्वास है कि श्री पणिक्करने अहिंसा के सिद्धान्तके अनिवार्य तत्त्वोंको हृदयंगम कर लिया है। मैंने उन्हें बता दिया है कि उन्हें जनताके सामने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिके आन्दोलनसे सम्बन्धित समस्त घटनाओंका यथातथ्य और निष्पक्ष निरूपण करना होगा। इस सम्बन्ध में समय-समयपर जो परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी, उनके बारेमें उनका रवैया सहानुभूतिपूर्ण तो होगा ही, लेकिन मैंने उन्हें बतला दिया है कि इसके साथ ही अगर कहीं कोई दोष नजर आये तो उसको भी छिपाना नहीं है। मैंने उनसे यह भी कहा है कि दोषोंको न छिपाकर ही उद्देश्यको सफल