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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपनी एक बातचीत के दौरान मैंने आपको बताया था कि मुझमें प्रभावशाली मध्यस्थता कर सकने की क्षमता बहुत ही कम है और यदि अन्य कारण न हों तो भी, स्वास्थ्य के कारण मैं मध्यस्थता नहीं कर सकता। मैं तो बस इतना ही कर रहा हूँ और यदि सम्भव हुआ तो आगे भी करना चाहूँगा कि मैत्रीपूर्ण मशविरा देता रहूँ। इसलिए मैंने आपको बताया था कि न्यासके हित सुरक्षित रखनेके लिए आपके पास जो भी उपाय हों उन्हें उपयोग में लानेसे विरत नहीं होना चाहिए। ऐसा मैंने इस आशा से कहा था कि मैं अन्तमें एक पूर्ण समझौता करा सकूँगा। मैंने आपको यह भी बताया था कि समझौते के लिए बातचीत करनेमें मुझे इसलिए रुकावट पड़ी कि मैं सम्बद्ध पक्षोंको बहुत अच्छी तरह नहीं जानता था। इसलिए विश्वासके साथ कुछ भी नहीं कह सका। आप इस पत्रका जैसा चाहें उपयोग करें।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

श्री शरीफ देवजी कानजी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ८५४८) की फोटो-नकलसे।
 

१८७. पत्र : एन॰ एस॰ फड़केको

पोस्ट अन्धेरी
२० मार्च, १९२४

प्रिय श्री फड़के,

आपका पत्र मिला।

आत्मसंयमपर लिखित जिस लेखका[१] आपने उल्लेख किया है, वह मैंने यह मानकर नहीं लिखा था कि भारतकी आबादी जरूरतसे ज्यादा हो गई है, वरन् इस विश्वाससे लिखा था कि हर मामलेमें आत्मसंयम रखना अच्छा है, विशेषकर ऐसे समय जब कि हम गुलामीकी स्थितिमें हैं। मैं कृत्रिम उपायों द्वारा सन्तति निग्रहके सर्वथा विरुद्ध हूँ, और मेरे लिए यह मुमकिन नहीं कि मैं आपको या आपके सहयोगियोंको एक ऐसा संघ बनानेके लिए बधाई दे सकूँ जिसकी कार्यवाहियोंसे यदि वे सफल हुईं तो लोगोंको केवल अत्यधिक नैतिक हानि ही पहुँचेगी। अच्छा होता कि मैं आपको और आपके सहयोगियोंको संघ भंग करने और किसी अन्य उत्कृष्टतर उद्देश्य में अपनी शक्ति लगाने के लिए राजी कर पाता। आप कृपया इस प्रकार निर्णयात्मक ढंगसे अपनी राय जाहिर करनेके लिए मुझे क्षमा करेंगे। यह मैं कुछ-कुछ

  1. अनुमानतः पद उस लेखका उल्लेख है जो १३-१०-१९२० के यंग इंडिया में 'इनकान्फीडेंस' शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था; देखि खण्ड १८, पृ४ ३६७-७१