पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/३३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१८५. पत्र : के॰ जी॰ रेखडेको

पोस्ट अन्धेरी
२० मार्च, १९२४

प्रिय श्री रेखडे,

आपका १८ तारीखका पत्र मिला।

मैं सलाह दूँगा कि आप विनोबासे मिलें। वे वर्धा में सत्याग्रहाश्रम चला रहे हैं। शायद आप उनसे मिल भी चुके हों। जिस दिशामें आप मदद चाहते हैं, उसके लिए विनोबासे अधिक उपयुक्त कोई अन्य व्यक्ति मुझे दिखाई नहीं देता। वे एक अनुशासनप्रिय व्यक्ति हैं। अनुशासन बहुत कठोर हो सकता है, परन्तु मैं मानता हूँ कि अनुशासन जरूरी और लाभदायक होता है।

जिन आर्थिक कठिनाइयोंसे आप गुजर रहे हैं, उनके सम्बन्धमें मेरी सहानुभूति आपके साथ है, किन्तु उनका कोई बड़ा महत्त्व नहीं है। मैं आपका मार्गदर्शन करनेमें असमर्थ हूँ।

हृदयसे आपका,

श्री के॰ जी॰ रेखडे
वकील
वर्धा

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५४७) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१२८ से।
 

१८६. पत्र : शरीफ देवजी कानजीको

जुहू
२० मार्च, १९२४

प्रिय शरीफ देवजी कानजी,

आपने 'केसरी' में प्रकाशित एक लेखके उस अंशकी ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया जिसका आशय यह निकलता है कि पूनाके पास प्रस्तावित मदरसे के मामलेमें उसके न्यासियों और सम्बद्ध हिन्दुओंके बीच मेरे द्वारा मध्यस्थता करनेके बावजूद आप सरकारतक पहुँच गये। इस बातको पढ़कर मुझे दुःख हुआ; इसलिए मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जहाँतक मैं जानता हूँ, आपने ऐसा कुछ नहीं किया है जिससे कि मध्यस्थताको ठेस लगे और यह तो निश्चित ही है कि मध्यस्थताकी अवहेलना करके आप सरकारतक नहीं पहुँचे। मुझे यह भी याद है कि