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१. पत्र : कोण्डा वेंकटप्पैयाको[१]

सत्याग्रहाश्रम,
साबरमती,
४ मार्च, १९२२

प्रिय मित्र,

मैंने तुम्हारा १९ फरवरीका पत्र इसलिए रख छोड़ा है कि तुम्हें विस्तारसे लिख सकूँ।

तुम्हारा पहला प्रश्न है कि क्या अपेक्षित अहिंसात्मक वातावरण कभी बनाया सकता है और यदि बनाया जा सकता है तो कब? यह प्रश्न जबसे असहयोग प्रारम्भ हुआ है तभीसे पूछा जाता है। जब मेरे कुछ निकटतम और समादरणीय सहयोगी भी मुझसे यह प्रश्न कुछ ऐसे भावसे पूछते हैं जैसे अहिंसात्मक वातावरणकी अपेक्षा यह कोई नई चीज हो, तब मुझे बड़ी हैरानी होती है। मुझे इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि यदि हमें अहिंसामें और अपने-आपमें पक्का विश्वास रखनेवाले कार्यकर्ता मिल जायें तो हम सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने के लिए अपेक्षित अहिंसात्मक वातावरण अवश्य बना सकते हैं। इन कुछ दिनोंमें मैं जो समझ सका हूँ वह यह है कि बहुत कम लोग अहिंसा के स्वरूपको पहचानते हैं। 'अवज्ञा' से पहले 'सविनय' विशेषणके प्रयोगका अर्थ निश्चय ही यह है कि अवज्ञा अहिंसापूर्ण होनी चाहिए। लोगोंको ऐसी कार्रवाइयोंमें भाग न लेनेकी तालीम क्यों न दी जाये जिनसे उनका सन्तुलन बिगड़नेकी सम्भावना हो? मैं मानता हूँ कि तीस करोड़ लोगोंको अहिंसापूर्ण बना सकना कठिन होगा; किन्तु मैं ऐसा मानने को तैयार नहीं हैं कि यदि हमें सचमुच ईमानदार और समझदार कार्यकर्ता मिल जायें तो आन्दोलनमें सक्रिय भाग न लेनेवाले लोगोंको अपने घरोंके अन्दर ही रहने के लिए तैयार करना कोई कठिन काम होगा। चौरीचौरामें[२] तो स्वयंसेवकोंने जान-बूझकर जुलूस निकाला था। उसे शरारतन ही थानेकी ओर ले जाया गया था। मेरी रायमें जुलूसकी तैयारी ही आसानीसे रोकी जा सकती थी। जुलूसके तैयार हो चुकने पर उसका थाने के सामनेसे गुजरना तो बहुत ही आसानीसे टाला जा सकता था। कहा जाता है कि जुलूसमें दो या तीन सौ स्वयंसेवक थे। मैं तो यह मानता हूँ कि इतने अधिक स्वयंसेवकोंका कारगर ढंगसे पुलिसवालोंकी नृशंस हत्याएँ रोक सकना बहुत आसान था; या फिर इतना तो हो ही सकता था कि सबके सब स्वयंसेवक आगकी उन लपटोंमें जल मरते जो उनके

 
  1. आन्ध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटीके अध्यक्ष
  2. संयुक्त प्रान्तके गोरखपुर जिलेके एक गाँवमें ५ फरवरी, १९२२ को लोगोंकी एक भीड़ने थाने में आग लगा दी थी जिसमें २२ सिपाही जीवित जल गये थे। गांधीजीको इस घटनासे बहुत दुःख हुआ था और १२ फरवरी को उन्होंने पाँच दिनका उपवास रखा था। देखिए खण्ड २२, पृष्ठ ४३८-४४ ।

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