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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रूपसे समझ लेना चाहिए कि यदि भारत परिस्थितिकी आवश्यकताके अनुसार पर्याप्त प्रयत्न नहीं करेगा, तो श्रीमती नायडूकी सारी सूझ-बूझ धरी रह जायेगी और यह विधेयक संघीय संसद द्वारा पारित कर दिया जायेगा।

मो॰ क॰ गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २७-३-१९२४
 

२०६. पत्र : एस॰ ए॰ ब्रेलवीको

पोस्ट अन्धेरी
२३ मार्च, १९२४

प्रिय श्री ब्रेलवी,

आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद।

श्री हॉर्निमैनपर लगाये गये प्रतिबन्धोंको हटानेके पक्षमें जनता द्वारा एक स्वरसे बिलकुल स्पष्ट माँग किये जानेके बावजूद सरकार टससे मस नहीं हुई। मेरे विचारसे इससे एक साथ दो बातें सूचित होती हैं—एक तो यह कि हम कमजोर हैं, और दूसरी यह कि सरकार जान-बूझकर जनमतकी अवहेलना करती है, फिर चाहे वह इतने जोरदार और सर्वसम्मत ढंगसे ही क्यों न व्यक्त किया जाये, जितने जोरदार और सर्वसम्मत ढंगसे श्री हॉर्निमैनके मामलेमें व्यक्त किया गया है। यदि हम थोड़ी देरके लिए इस दलीलको सही भी मान लें कि प्रतिबन्ध हटानेकी हमारी माँग गलत है, तो भी इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि सरकार हमारे लिए गलती करनेकी भी गुंजाइश नहीं रहने देना चाहती। इसलिए हमारी सार्वजनिक सभाओंका बस इतना ही उद्देश्य रह जाता है कि हम उनके जरिये श्री हॉर्निमैनको जतला दें कि हमने उनकी सेवाओंको भुलाया नहीं है और उनको वापस लौटनेका परवाना न मिल पानेका कारण यह नहीं है कि हम ऐसा नहीं चाहते; बल्कि उसका कारण यह है कि हम इसमें असमर्थ रहे हैं। लेकिन यह उद्देश्य भी काफी अहम है। अस्तु मेरी कामना है कि आपकी सभा हर दृष्टिसे सफल हो।[१]

हृदयसे आपका,

श्री एस॰ ए॰ ब्रेलवी
'बॉम्बे क्रॉनिकल'
बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५६७) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१४२ से।
  1. बम्बई में २५ मार्चको वायस ऑफ इंडियाके कार्यालय में हुई पत्रकार संघको एक बैठक में इस पैराको सन्देशके रूपमें पढ़कर सुनाया गया था। के॰ नटराजन्, 'इंडियन सोशल रिफॉर्मर' के सम्पादक ने उसकी अध्यक्षता की थी।