पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/३६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२०७. पत्र : डी॰ आर॰ मजलीको

पोस्ट अन्धेरी
२३ मार्च, १९२४

प्रिय मजली,

आज सुबह सबसे पहले मुझे तुम्हारा ही खयाल आया और मैंने मन-ही-मन सोचा कि तुमको फिरसे पहले जैसा बननेमें में तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ। अगला कांग्रेस अधिवेशन बेलगाँवमें होना तय हुआ है।[१] मैं जानता हूँ कि तुम उसकी तैयारियों में हाथ बँटाना चाहते हो। मैं यह भी जानता हूँ कि तुम हमारे अच्छेसे-अच्छे कार्यकर्त्ताओं में से हो। तुमको अब इतना ही करना है कि अपना मन बिलकुल शान्त रखो और मानसिक उत्तेजनासे बचते रहो। मुझे लगता है कि जेलमें तुम देशकी समस्याओंके बारेमें काफी सोचते रहे हो। लेकिन समस्याओंके बारेमें सोचते रहना ही हमारे लिए काफी नहीं है। हम हैं ही क्या? हमें अपनी सारी चिन्ताएँ ईश्वरके भरोसे छोड़ देनी चाहिए। हमारा काम केवल इतना ही है कि हम भारतके कन्धोंपर पड़े भारको हलका बनानेकी अपनी शक्ति-भर कोशिश करते रहें। तुमने कभी तुलसीदासकी 'रामायण' पढ़ी है? यदि तुमको हिन्दी अच्छी तरह न आती हो, तो शायद तुमने उसे नहीं पढ़ा होगा। मेरी समझमें तो उस महान् सन्तने राम-नामके यशोगानके लिए ही 'रामायण' की रचना की थी। मेरे लिए तो यह रक्षा कवच—जैसा रहा है। बचपनमें मुझे अपनी माँकी अपेक्षा अपनी धायका अधिक साथ मिला था और में उसे अपनी माँकी तरह ही प्यार करता था। वह मुझसे कहा करती थी कि रातमें भूत-प्रेतोंका खयाल आनेपर अगर मुझे उनसे डर लगने लगे तो रामनामके जापसे मैं उनको भगा सकता हूँ। धाय-माँपर गहरी आस्था होनेके कारण मैंने उसकी बतलाई तरकीबपर अमल किया। जब भी रातके समय मुझे किसी तरहका डर लगता, मैं इसी पवित्र नामका जाप करने लगता और उससे मेरा डर भाग जाता था।[२] उम्र बढ़ने के साथ-साथ मेरी आस्था कमजोर पड़ती गई। मुझे राह दिखानेवाली, मेरी धाय-माँ तबतक मर चुकी थी। मैंने रामनामका जाप छोड़ दिया और मेरे मनमें फिर डर पैदा होने लगा। लेकिन जेलमें मैंने इतने ध्यान और आस्थाके साथ 'रामायण' का पाठ किया जितने ध्यान और आस्थाके साथ कभी नहीं किया था। जब भी मुझे अकेलापन महसूस होता या मेरे हृदयमें अहंकार जागता और जब भी वह मुझसे यह कहने लगता कि मैं सचमुच भारतके लिए कुछ कर सकता हूँ, तभी इस नामके जापसे मेरे मनमें यथोचित विनम्रताका भाव पैदा होने लगता और मुझे सर्वशक्तिमान् के अस्तित्वकी अनुभूति होने लगती। मैं इस प्रकार अपना अकेलापन दूर करनेके लिए

  1. यह अधिवेशन दिसम्बर १९२४ में गांधीजी की अध्यक्षता में हुआ था।
  2. देखिए आत्मकथा, भाग १, अध्याय १०।