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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शान्त भावसे राम-नामके साथ उस सारी महिमाकी कल्पना करके, जिससे उसे तुलसीदासने मण्डित किया है, उसका जाप किया करता था। उस समय मेरे मनमें जो अकथनीय शान्ति उपजती थी, उसे मैं शब्दोंमें व्यक्त नहीं कर सकता। तुमको मालूम ही है कि श्री बैंकरको[१] कुछ समय के लिए मुझसे अलग रख दिया गया था। जब उनको फिरसे मेरे साथ रखा गया, उन्होंने मुझे अपना अनुभव सुनाया। जब वार्डर-ममताहीन भावसे उनकी कोठरीके दरवाजे में ताला लगाकर चले जाते तब उनको तरह-तरह के डर सताने लगते थे। पर उन्होंने मुझको बड़े ब्योरेवार ढंगसे बतलाया कि इस नामके जापसे किस तरह उनके मनमें शान्ति पैदा होने लगती थी और उनको सभी तरहके डरपर काबू पानेकी शक्ति मिलने लगती थी। इसीलिए मैं यह काफी जांचा-परखा नुस्खा तुम्हें लिख रहा हूँ। जब भी मनमें उत्तेजना महसूस होने लगे, रामका स्मरण करो और सोचों कि इस नामके जापमें मनको शान्त करनेकी कितनी अद्भुत क्षमता है। धीरे-धीरे जाप करते चलो, दूसरी सभी चीजोंको भूल जाओ और कल्पना करो कि इस विराट विश्वमें तुम एक क्षुद्रतम कण हो। ईश्वर चाहेगा तो मनकी उत्तेजना शान्त हो जायेगी, और तुमको हृदयमें एक बड़ी आनन्द- दायक शान्ति महसूस होने लगेगी। प्राचीन कालके हमारे ऋषिगण अपने अनुभवसे जानते थे कि इस जापकी क्या महिमा है। इसीलिए उन्होंने चिन्ताग्रस्त लोगों के लिए राम-नामका जाप, द्वादशाक्षर मन्त्र और ऐसे ही अन्य उपाय बतलाये हैं। मैं जितना ही इनके बारेमें सोचता हूँ, ये सभी मन्त्र आज मुझे उतने ही अधिक सच्चे प्रतीत होते हैं। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे मनमें इतनी आस्था उपजे कि तुम राम-नामका जाप करने लगो, या ऐसे ही किसी अन्य मन्त्रका जाप करने लगो जिसकी स्मृति तुम्हारे मानस पटलपर आस्थापूर्वक अंकित हो गई हो। मुझे विश्वास है कि ऐसा करनेसे तुम फिर पहले जैसे ही बन जाओगे।

हृदयसे तुम्हारा,

[पुनश्चः]

तुम्हें याद होगा कि तुम्हें मेरे एक पत्रका उत्तर अभी देना बाकी है। मैंने तुम्हारे पोस्टकार्डका उत्तर तुरन्त दे दिया है। मैं अपने पत्रको प्राप्तिकी सूचनाका इन्तजार करूँगा[२]

श्रीयुत डी॰ आर॰ मजली,
बेलगाँव

अंग्रेजी प्रति (सी॰ डब्ल्यू ॰ ५१४१) से।
सौजन्य : कृष्णदास
  1. शंकरलाल बैंकर, जो परवदा जेलमें गांधीजी के साथ बन्दी थे।
  2. मजलीने इसके उत्तर में एक पोस्टकार्ड लिखा था, जो यंग इंडिया में प्रकाशित हुआ था। देखिए "टिप्पणियाँ", ३-४-१९२४।