डाह्याभाई तुम्हारे बदले चरखा अधिक समय चलाते ही होंगे।
बापूके आशीर्वाद
- [गुजरातीसे]
- बापुना पत्रो : मणिबहेन पटेलने
२१०. अपील : जनतासे[१]
जुहू
२४ मार्च, १९२४
जो कुछ मैं यहाँ लिख रहा हूँ वह मुझसे मिलने आनेवाले भाई-बहनोंके लिए है।
अख़बारों द्वारा मैं निवेदन कर चुका हूँ कि जिन्हें मुझसे मिलना अनिवार्य हो वे शामको चार और पाँच बजेके बीच आयें। या तो यह निवेदन लोगोंतक पहुँचा ही नहीं या वे आदतसे मजबूर हैं और निश्चित समयकी परवाह किये बिना आते ही रहते हैं। फल मुझे भोगना पड़ता है। जिस थोड़ी-बहुत सेवाका में निमित्त बना हुआ हूँ, उसमें भी व्यवधान पड़ जाता है।
मेरे शरीरमें आजकल शक्तिकी पूंजी बहुत कम है। इसलिए उसे मैं केवल सेवा में ही लगाना चाहता हूँ। अगले सप्ताहसे में 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' का सम्पादन फिर हाथमें ले रहा हूँ। उसके लिए पूर्ण शान्ति आवश्यक है। यदि मेरी सारी शक्ति और सारा समय आप लोगोंसे मिलने और बातें करनेमें चला जाये तो मैं इन पत्रोंका जैसा सम्पादन करना चाहता हूँ वैसा नहीं कर पाऊँगा।
और फिर इससे लोगोंको कुछ लाभ होनेकी सम्भावना भी नहीं है। यह मेरे प्रति आपके प्रेमका चिह्न तो अवश्य है, परन्तु यह ज्यादतीकी निशानी है। इस प्रेमको मैं एक महान् शक्ति मानता हूँ। मैं चाहता हूँ कि लोग उसे मुझसे मिलनेमें खर्च करनेके बदले देशकी सेवा में लगायें। मुझसे मिलने के लिए आने-जाने में जो खर्च होता है वह मुझे खादी के उत्पादन और प्रचारके लिए भेज दें। जो समय मुझसे मिलने आनेमें जाता है, उसे वे नीचे लिखे कामोंमें लगायें :
- (१) सूत कातें अथवा रुई धुनकर पूनियां बनायें;
- (२) खादीका प्रचार करें;
- (३) अपने पड़ोसीको सूत कातना या रुई धुनना सिखायें।
जो लोग यह भी करने को तैयार न हों और मुझसे मिले बिना न रह सकते हों, वे सोमवारको छोड़कर किसी भी दिन शामको ५ से ६ के बीचमें आयें। मैं सोमवारको मौन रखता हूँ और किसी आगन्तुकसे नहीं मिलता। मैं सबसे अलग-
- ↑ यह खुला पत्र गुजराती में लिखा गया था और समाचारपत्रोंमें प्रकाशित हुआ था।