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पत्र : डी॰ वी॰ गोखलेको

अलग नहीं, बल्कि एक साथ ही मिल सकूँगा। और मेरा निवेदन है कि आप लोग इसमें सन्तोष मानें।

जो लोग मिलने आते हैं उनसे मैं इतना और चाहता हूँ कि वे अपना काता हुआ सूत अथवा कुछ रकम साथ लेते आयें। सूतकी खादी बुनाई जायेगी और पैसा खादीके उत्पादनमें खर्च किया जायेगा।

मेरी इस प्रार्थनापर आप ध्यान देंगे तो मैं आपका कृतज्ञ होऊँगा और इससे देशकी सेवा के लिए मेरा समय बचेगा।

मोहनदास करमचन्द गांधी

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २७-३-१९२४
 

२११. पत्र : डी॰ वी॰ गोखलेको

अन्धेरी
२४ मार्च, १९२४

प्रिय श्री गोखले,

पत्रके लिए धन्यवाद। मैं आपकी स्थिति समझता हूँ। पर सचमुच मेरा खयाल है कि सरकारके प्रति न्यासियों (ट्रस्टियों) का रुख मध्यस्थ निर्णयके लिए उनके तैयार होनेकी बातसे बिलकुल मेल खाता है। मैं आपको गलत नहीं समझँगा, इसका वचन देता हूँ। आपके कुछ कार्योंसे मुझे शिकायत हो सकती है, फिर भी मैं सदाशयतापूर्ण मतभेदोंकी कद्र करता हूँ।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[पुनश्च :]

चूँकि आपने अपने पत्रको निजी और गोपनीय रखनेकी इच्छा प्रकट की थी इसलिए मैंने उसे नष्ट कर दिया है।

मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ८५७६) की फोटो-नकलसे।