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पत्र : मुहम्मद अलीको

सकेगा। क्या आप जमनालालजीसे मिले हैं? शायद उनसे आपको सही सलाह मिल जायेगी।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत के॰ जी॰ रेखड़े,
वर्धा (मध्य प्रान्त)

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५८२) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१४४ से।
 

२१४. पत्र : मुहम्मद अलीको

पोस्ट अन्धेरी
२५ मार्च, १९२४

प्यारे दोस्त और भाई,

आपका पत्र[१] मिला। मैं समाचारपत्रोंके जरिये आपकी गतिविधियोंकी जानकारी रखता आया हूँ और मैंने देखा है कि आपने परिवारपर टूटनेवाली इस विपत्तिका[२] सामना जिस साहस और तितिक्षा भावसे किया है वह आपके ही योग्य है। मुझे भी ठीक यही उम्मीद थी। आपने अमीनाके अन्तिम क्षणोंका जो विवरण मुझे लिखा है, उसे मैं अपनी दोस्तीका एक खास हक मानता हूँ। वह बड़ी अच्छी और प्यारी बच्ची थी। बहुत ही अच्छा हो, अगर आप मेरे साथ एक हफ्ता गुजार सकें। मेरी तो इच्छा है कि आप बेगम साहिबा और अपने समस्त परिजनोंके साथ आयें, लेकिन इस इतने बड़े बँगलेमें भी जगहकी कुछ तंगी हो गई है। आपकी देखभाल तो मैं आसानीसे कर सकता हूँ, मतलब यह कि आप अपनी मर्जी के मुताबिक रहेंगे और इस बँगलेमें, जो अस्पताल ही बन गया है, जितना भी मुमकिन है उतना आराम पा सकेंगे। मैं यहाँ मरीजों के बीच रह रहा हूँ। मगनलालकी पुत्री राधा और वल्लभभाईकी पुत्री मणिबाईने चारपाई तो नहीं पकड़ी है, पर वे चलने-फिरनेसे लाचार हैं; और मैंने पगले मजलीको भी यहीं आनेके लिए लिखा है। मैं कह नहीं सकता कि बड़े भाईकी भी तीमारदारी करनेसे मुझे कितनी खुशी हासिल होगी, लेकिन यह तभी हो सकता है जब मैं चंगा हो जाऊँ। इन सब मरीजोंको यहाँ रखनेका मंशा भी साफ-साफ समझा जाना चाहिए। आपको मालूम होना चाहिए कि मैं अगर एक सियासी आदमी हूँ फिर भी मुझमें नर्स होने का माद्दा उससे भी बढ़कर है। और इतना ही नहीं मुझे तो शर्म महसूस हो रही थी कि मैं अकेले ही इतना बड़ा बँगला दबाये बैठा हूँ जब कि बाहर इतने सारे मरीज पड़े हैं और उनमें कुछ तो ऐसे हैं जो मेरी ही देख-रेखमें बड़े हुए हैं और जिन्हें तीमारदारी और आबोहवाकी तब्दीलीकी कहीं ज्यादा जरूरत है। इसलिए वे सब यहीं आ गये हैं—मेरे दिमागी सुकूनके लिए नहीं, अपने ही भले के लिए। पर बँगलेको इस तरह अस्पताल बना देनेपर अब मैं खुद

  1. यह उपलब्ध नहीं है।
  2. तात्पर्य मुहम्मद अलोकी पुत्री, अमोनाकी मृत्युसे है।