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२१२. पत्र : च॰ राजगोपालाचारीको

सोमवार, २४ मार्च, १९२४

प्रिय राजगोपालाचारी,

पुत्र अपने पितासे आगे बढ़ गया। यही होना भी चाहिए। आप समझ सकते हैं, इस तथ्यकी जानकारीने मेरे मस्तिष्कपर कितना गहरा प्रभाव डाला है।

नटराजन्[१] और जयकरसे काफी देर तक गपशप हुई। वे कल फिर आ रहे हैं। बड़ा अच्छा हो, अगर वक्तव्य[२] तैयार करके समाचारपत्रोंको देनेसे पहले मैं आपको दिखला सकूँ। कोशिश करूँगा, पर हो सकता है सफलता न मिले। बिना बुलाये आनेवाले लोग मेरा काफी समय ले लेते हैं। मैं इस गड़बड़ीको दूर करनेकी कोशिश कर रहा हूँ।

आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ८५७७) की फोटो-नकलसे।
 

२१३. पत्र : के॰ जी॰ रेखड़ेको

पोस्ट अन्धेरी
२५ मार्च, १९२४

प्रिय श्री रेखड़े,

आपका पत्र मिला। मैं नहीं समझता कि साबरमती आश्रमका जीवन आपको सन्तोष दे पायेगा। आजकल वहाँ सारा ध्यान हाथ-कताई और हाथ-बुनाईके विकासपर ही लगाया जा रहा है। आश्रम में पठन-पाठनका उतना महत्त्व नहीं रह गया है। इसलिए आश्रम में एक बड़े अच्छे पुस्तकालयके होते हुए भी मैं यह नहीं कह सकता कि वहाँका वातावरण दर्शन-शास्त्र के अध्ययनके लिए अनुकूल है या नहीं। जब आस-पासके सभी लोग अपनी पूरी शक्तिसे काममें जुटे हों, तब कोई भी अध्ययन और मननमें नहीं जुट सकता। आश्रमके जीवनको यह नया मोड़ इसलिए दिया गया है। कि मेरा अपना पक्का विश्वास है कि हम दर्शनशास्त्र और राजनीति के अध्ययनमें जरूरत से ज्यादा डूब चुके हैं—इतना कि हाथ-पैरसे काम करनेकी हमारी प्रवृत्तिको जैसे काठ ही मार गया हो। आश्रम में शारीरिक श्रमके प्रति रुचि जगानेकी कोशिश की जा रही है। और आश्रम रुपये-पैसेकी आपकी जरूरतोंको भी पूरा नहीं कर

  1. के॰ नटराजन्, इंडियन सोशल रिफॉर्मरके सम्पादक।
  2. वक्तव्य अनुमानतः कौन्सिलोंमें प्रवेश और हिन्दू-मुस्लिम एकता के सम्बन्धमें था; क्योंकि उन दिनों गांधीजी इन विषयोंपर एक वक्तव्य तैयार करनेकी सोच रहे थे।