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पत्र : पी॰ के॰ नायडूको



(३) यदि नहीं हुई तो यह कबसे बन्द हुई?
(४) चाय बागानोंमें जाकर किस बातकी जाँच करनी है?

जबतक चाय बागानके मालिकोंकी शर्तोंमें रद्दोबदल न हो, तबतक हालात पहलेसे बेहतर नहीं हो सकते। यदि शर्तें भिन्न प्रकारकी हैं तो उनकी एक नकल आपको उन गाँवोंमें मिल जानी चाहिए, जहाँ भरती हो रही है। इसलिए मेरी समझ में नहीं आता कि अभी चाय बागानोंमें जाकर जाँच करनेसे क्या लाभ हो सकता है। इसके अलावा, कोई भी कदम उठानेसे पहले असमकी प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीसे पत्र-व्यवहार कर लेना चाहिए। इसलिए मैं तो यह सुझाव दूँगा कि आप उल्लिखित जिलोंमें हो रही भरतीका पूरा विवरण देते हुए एक पत्र[१] लिखें। यदि आप मेरे सुझावको मान लें, तो उत्तर देते समय असम कमेटीको लिखे गये अपने पत्रकी नकल भी कृपया मेरे पास भेज दें।

हृदयसे आपका,

रामानन्द संन्यासी
बलदेव आश्रम
खुर्जा, यू॰ पी॰

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६२०) की फोटो-नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१७२ से।
 

२४०. पत्र : पी॰ के॰ नायडूको

पोस्ट अन्धेरी
२८ मार्च, १९२४

प्रियवर नायडू,[२]

इतने लम्बे अरसे के बाद आपकी लिखावट देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई।

मैं दक्षिण आफ्रिकामें होनेवाली घटनाओंके प्रवाहको अत्यधिक ध्यान और चिन्तासे देख रहा हूँ। यदि कोई व्यक्ति इस घटना प्रवाहको हमारे अनुकूल मोड़ दे सकता है, तो वे निश्चय ही श्रीमती नायडू[३] हैं। उनके तौर-तरीकोंमें एक विचित्र-सा जादू है और वे अपने कर्त्तव्य-पालनमें कभी थकतीं नहीं। वे इस महीनेके अन्ततक या शायद और भी अधिक समयतक वहां रहें। मैं केवल यही आशा करता हूँ कि यदि सारे प्रयत्नोंके बावजूद वर्ग क्षेत्र विधेयक (क्लास एरियाज़ बिल) कानून बन जाता है

  1. रामानन्द संन्यासीने १ अप्रैलको फिर पत्र लिखा, और उसमें गांधीजीने जो ब्योरा माँगा था वह सब दिया और साथमें, जैसा गांधीजीने सुझाया था, असम कांग्रेस कमेटीको लिखे पत्रकी एक नकल भी भेजी। देखिए परिशिष्ट ११।
  2. दक्षिण आफ्रिकाके एक सत्याग्रही और गांधीजी के सहकर्मी।
  3. सरोजिनी नायडू।