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२४७. पत्र : जमनालाल बजाजको

शनिवार [२९ मार्च, १९२४][१]

चि॰ जमनालाल,

तुमने कानपुर जानेका इरादा छोड़ दिया, यह ठीक किया है। अभी कमजोरी के सिवाय और भी कुछ है क्या?

चिंचवडकी संस्थाको[२] तुम जानते हो। उनका विरोध काफी हो रहा है। पैसेकी तंगी भी बनी ही रहती है। मैं समझता हूँ कि उन्हें मदद देनेकी जरूरत है। सोचता रहता हूँ कि यह किस तरह दी जाये। कुल मिलाकर उन्हें १५,००० रुपयोंकी जरूरत है। इतनी मदद मिल जाये तो फिर उन्हें बिलकुल जरूरत न होगी और वे फिर न माँगनेकी प्रतिज्ञा करनेके लिए तैयार हैं। यदि तुम्हारा अनुभव मेरी तरह हो कि वे लोग इसके लायक हैं और तुम्हें सुविधा हो तो मैं चाहता हूँ कि उनकी इतनी मदद तुम करो।

राजगोपालाचारीको फिरसे दमेका दौरा शुरू हुआ है। मैं समझता हूँ कि उन्हें नासिककी हवा माफिक आयेगी। यदि तुम्हें सुविधा हो तो उन्हें सेलम पत्र लिखो कि वे कुछ समय तुम्हारे पास आकर रहें। दवा भी वे पूनाके वैद्यकी ही लेते हैं। वे वैद्य उनकी जाँच भी कर सकते हैं। मैंने उन्हें लिखा तो है कि जबतक तुम वहाँ हो तबतक वे नासिक रहने चले आयें तो ठीक होगा।

तुम्हें मालूम हुआ होगा कि पूनाके वैद्यका इलाज वल्लभभाईकी मणिबेन, मगनलालकी राधा और प्रो॰ कृपलानीकी [बहन] के लिए शुरू किया है। इसकी प्रेरणा देनेवाला देवदास है।

इन वैद्य के सम्बन्धमें तुम्हारा अनुभव क्या है, सो लिखना।

मालवीयजी कल काशी गये। हिन्दू-मुसलमानोंके सम्बन्धमें कुछ बातें हुईं। हकीमजी आये थे। उन्होंने भी इसी विषयमें बातें कीं। मोतीलालजी यहीं हैं, वे अभी रहेंगे। वे कौंसिलकी बातें कर रहे हैं।

मैं सब बातोंका विचार करता रहता हूँ।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २८४५) की फोटो-नकल से।
  1. पत्रमें मदनमोहन मालवीय, हकीम अजमलखाँ आदिसे हुई बातचीतका उल्लेख है; यह बातचीत मार्च १९२४ के अन्तिम सप्ताह में जुहूमें हुई थी और अन्तिम शनिवार २९ मार्चको था।
  2. पूनाके पास, चिंचवड नामक गाँव में, श्री कानिटकर द्वारा संचालित स्वावलम्बन पाठशाला।