पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/३९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२४८. पत्र : के॰ टी॰ पॉलको[१]

[२९ मार्च, १९२४ या उसके पश्चात्][२]

मंगलवारको अवश्य आयें। यदि मैं अन्य मित्रोंके बीच समय निकाल सका तो निकालूँगा। अन्यथा आप फिर बृहस्पतिवारको आयें। आप अपना भोजन यहीं करें।[३]

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६२८) की फोटो-नकलसे।
 

२४९. भाषण : जुहूमें[४]

[३० मार्च, १९२४के पूर्व]

ऐसी बढ़िया जगह, जहाँ मकानोंकी तंगी नहीं, जहाँ हवा और रोशनीका अन्त नहीं, और जहाँ आप बम्बईकी गन्दगी और भीड़से भागकर आते हैं, वहाँ निमोनिया क्यों होता है और दूसरी बीमारियां क्यों फैलती हैं? मैं तो समझ ही नहीं सकता। मैं खुद बीमार हूँ, अतः मैं आपको उलाहना देनेकी बजाय इस बातको कबूल कर लेना और आपको समझाना अच्छा समझता हूँ कि इनके लिए हम लोग ही जिम्मेवार हैं। मच्छर, मक्खी, डाँस और अन्य कीड़े-मकोड़े जिनसे रोग फैलते हैं, मेरी राय में कुदरतके बनाये कोड़े हैं। ये कोड़े यदि हमपर न पड़ें तो हमारी आँखें किस तरह खुलें? मैं यहाँ रहकर जितनी चाहूँ उतनी गन्दगी बढ़ा सकता हूँ और जितने चाहूँ उतने मच्छर, मक्खियाँ और डाँस पैदा कर सकता हूँ, परन्तु आप देखते हैं कि यहाँ ऐसी कोई बात नहीं है। यहाँ तो मैं जिस दिन आया था, मैंने उसी दिन कह दिया था, हमें भंगीकी जरूरत नहीं है। भंगी यहाँ है तो, परन्तु यहाँका आधा मैला उठाने और सफाई रखनेवाले तो ये लड़के—देवदास, प्यारेलाल और कृष्णदास हैं। यदि कोई
  1. के॰ टी॰ पॉल, सी॰ एक॰ एन्ड्यूजके एक मित्र। कलकत्ताके फेडरेशन ऑफ नेशनल यूथ एसोसिएशन्ससे सम्बद्ध थे। ११ फरवरीके एक पत्रमें उन्होंने गांधीजीसे मिलने और "शान्त वातावरणमें बिना जल्दबाजीके बातचीत करनेकी" इच्छा व्यक्त की थी। ऐसा लगता है कि गांधीजीने पहली मार्चको पॉलको एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि अन्तर्जातीय समस्या सुलझानेके बारेमें उन्होंने जो सुझाव दिया था वह उन्हें [श्री पॉलको] पहले ही सूझ गया है। पर यह पत्र उपलब्ध नहीं है।
  2. देवदास गांधीके नाम २९ मार्चको लिखे पत्र में पलने पहली अप्रैलको गांधीजीसे मिलने की इच्छा व्यक्त की थी। यह उत्तर उसी पत्रके पृष्ठ भागपर लिख दिया गया था।
  3. गांधीजीके स्वाक्षरोंमें पत्रके अन्त में यह टिप्पणी है : "डा॰ किचलू पत्र लेकर पहुँचा सकते हैं।"
  4. गांधीजीने यह भाषण जुहूके पास विले पार्ले में वहाँकी राष्ट्रीय शालाके अध्यापकों, प्रबन्ध समिति के सदस्यों और छात्रोंके संरक्षकोंकी छोटी-सी सभामें दिया था और इसका विवरण ३१-३-१९२४ के नवजीवन में महादेव देसाई द्वारा प्रेषित रिपोर्टके रूपमें छपा था। अध्यापकोंका विचार था कि शाला में अस्पृश्य बालक भी प्रविष्ट किये जायें; किन्तु सनातनी संरक्षक उनके इस विचारको पसन्द नहीं करते थे।