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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैं. . .[१] पहुँचने की आशा करता हूँ। उसके पश्चात् डेढ़ महीनेतक मेराविचार कहीं जानेका नहीं है।

बापूके आशीर्वाद

चि॰ मगनलाल गांधी
सत्याग्रह आश्रम
साबरमती

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६०४१) से।
सौजन्य : राधाबेन चौधरी
 

२६१. भेंट : 'बॉम्बे क्रॉनिकल' के प्रतिनिधिसे

[३ अप्रैल, १९२४]

महात्मा गांधी इधर हाल ही में बीमारीसे उठे हैं और स्वास्थ्य-लाभके इन दिनों में भी उन्होंने कामका अत्यधिक भार अपने ऊपर लेना शुरू कर दिया है। तथापि उन्होंने हमारे प्रतिनिधिको भेंटकी अनुमति दे दी। हमारा प्रतिनिधि कल सुबह जुहू स्थित उनके निवासपर मुलाकात के लिए गया था। कल सुबह मुलाकात करनेवालों में थे : सर्वश्री शुएब कुरैशी, डी॰ चमनलाल और डा॰ किचलू।

"पिछले सप्ताह हमारी काफी लम्बी बातचीत हुई थी। उसके बाद फिर इतनी जल्दी आपको परेशान करनेका मेरा मंशा नहीं है," हमारे प्रतिनिधिने उनकी शान्ति और विश्राम में बाधा डालनेके लिए क्षमा-याचना करते हुए कहा, क्योंकि उसे गांधीजीकी गुजरातीमें की गई वह अपील[२] याद आ गई, जिसमें उन्होंने कहा था :

मेरे शरीरमें आजकल शक्तिकी पूँजी बहुत ही कम है, और उसे में केवल सेवामें ही लगाना चाहता हूँ। अगले सप्ताहसे में 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' का सम्पादन फिरसे हाथमें ले रहा हूँ। और उसके लिए पूर्ण शान्ति आवश्यक है। यदि मेरी सारी शान्ति और समय आप लोगोंसे मिलने और बातें करनेमें चला जाये तो मैं पत्रोंका जैसा सम्पादन करना चाहता हूँ, वैसा नहीं कर पाऊँगा।

हमारे प्रतिनिधिने पूछा : लेकिन आजकल आप स्वराजियों तथा अन्य नेताओंसे जो परामर्श कर रहे हैं, उसके परिणामके सम्बन्ध में क्या आप मुझे छोटा-सा वक्तव्य नहीं देंगे?

महात्माजी अत्यन्त विनोदप्रिय मुद्रामें थे। उन्होंने कहा कि में अब भी बीमार हूँ और मुझसे वर्तमान स्थिति के सम्बन्ध में तबतक कुछ भी कहनेकी आशा नहीं की

  1. साधन-सूत्र में अस्पष्ट।
  2. देखिए "अपील : जनतासे", २४-३-१९२४।