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२७१. पत्र : हैदराबादके निजामको

पोस्ट अन्धेरी
५ अप्रैल, १९२४

श्रीमान्,

आपका पहली अप्रैलका लिखा पत्र[१] प्राप्त हो गया है। पहली मार्चका पत्र भी मिला था; उसका उत्तर मैं ५ मार्चको[२] भेज चुका था। मुझे इस बातपर आश्चर्य है कि मेरा उत्तर श्रीमान् के पास नहीं पहुँचा। इस पत्रके साथ मैं उस उत्तरकी नकल भेज रहा हूँ।

मैं हूँ
श्रीमान्‌का वफादार दोस्त

संलग्न :

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८४२८) की फोटो-नकलसे।
 

२७२. पत्र : एच॰ वाल्टर हीगस्त्राको

प्रिय श्री हीगस्त्रा,

पोस्ट अन्धेरी
५ अप्रैल, १९२४

आपका पत्र मिला, धन्यवाद।
प्रथम प्रश्नका उत्तर नीचे दे रहा हूँ :

मेरा कार्यक्षेत्र भारत है। मेरा लक्ष्य भारतके लिए स्वराज्य प्राप्त करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपनाये जानेवाले साधन हैं अहिंसा और सत्य। इसलिए भारतके स्वराज्य से संसार के लिए कोई खतरा नहीं है; इतना ही नहीं अगर वह स्वराज्य केवल उपरोक्त साधनों द्वारा ही प्राप्त किया गया तो वह मानव मात्रके लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध होगा। चरखा आन्तरिक सुधारका बाह्य चिह्न है और यदि

  1. वह इस प्रकार था :
    "निजामने अपनी मर्जीसे बरारको स्वशासन अधिकार इस सरकारको इस आशयका पत्र भेजे कि हम फिर हैदराबाद बरार इस स्वशासन व्यवस्थाको—जो उसे मिला ही समझिए—स्वीकार नहीं करता है तो यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बरारको अपने स्वशासन सम्बन्धी अधिकारका दावा, जिसको लेकर सारे भारत में इतना शोर-गुल और आन्दोलन हो रहा है, छोड़ देना चाहिए।. . .।"
  2. देखिए "पत्र : हैदराबादके निजामको", ५-३-१९२४।