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३०७. पत्र : महादेव देसाईको

सोमवार, ७ अप्रैल, १९२४

भाईश्री महादेव,

मैं तुम्हें सूचीके अनुसार सामग्री भेज रहा हूँ। इसमें भाषा, व्याकरण आदिकी जो भूलें ध्यान में आयें उन्हें ठीक कर लेना। मैंने काफी पूछताछ करवा ली है। यदि तुम किसी चीजको छोड़ना आवश्यक समझो तो 'जेलके अनुभव' ही छोड़ना।

मेरी और एन्ड्रयूजकी दक्षिण आफ्रिकाके सम्बन्ध में एसोसिएटेड प्रेसको दी गई भेंट शामिल न करना। जो चीज दूसरी जगह छप चुकी है मेरे खयालसे उसको संरक्षित रखनेका यह तरीका ठीक नहीं है। ऐसे लेखोंकी एक अलग फाइल रखी जा सकती है अथवा वे 'यंग इंडिया' से सम्बन्धित साप्ताहिक फाइल में रखे जाने चाहिए।

चूँकि 'जेलके अनुभव' का प्रकाशन आरम्भ कर दिया गया है, मुझे उसे जारी रखना चाहिए। अधिक पीछे लिखूँगा। मैंने कहा था कि यदि सम्भव हुआ तो सत्याग्रह-सप्ताह के सम्बन्ध में गुजरातीमें लेख लिखूँगा। किन्तु अब तुम 'नवजीवन' के परिशिष्टमें 'यंग इंडिया' की अंग्रेजी टिप्पणीका अनुवाद दे सकते हो।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :]

यदि 'जेलके अनुभव' छोड़ने के बाद भी इस सप्ताह तुम्हारे पास जरूरतसे ज्यादा सामग्री हो तो तुम 'यूनिटी'[१] के लेखको अगले सप्ताह में ले सकते हो। मुहम्मद अलीके सम्बन्धमें लिखे गये लेखको अग्रलेखके रूपमें छापना। टिप्पणियाँ जिस क्रम रखी गई हैं उसी क्रमसे देनेका प्रयत्न करना; किन्तु बदलना चाहो तो बदल भी सकते हो।

मूल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ८६९६) की फोटो-नकलसे।
  1. शिकागोके इस मासिक पत्रके लेखसे लिये गये गांधीजीके उद्धरण। और उसके सम्बन्ध में की गई गांधीजीकी टिप्पणीके लिए देखिए, "असहयोग हिंसाका तरीका नहीं हैं", १०-४-१९२४।