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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


पुस्तकके लिए भी तुम सारी सामग्री अभी साथमें ही छाप लो, यह ठीक है या नहीं, मैं नहीं कह सकता। पुस्तकमें तो शायद कुछ परिवर्तन भी करने हों। इस अवस्थामें उसे तो शायद नये सिरेसे कम्पोज करना ही अच्छा होगा। किन्तु इस सम्बन्धमें बिलकुल ठीक क्या है, यह तो तुम्हीं जानो। यदि मेरा खयाल यह न होता तो मैं तुम्हारी प्रशंसा करता ही क्यों?

शिक्षा सम्बन्धी अंककी छपाई ऐसी होनी चाहिए जिससे हमारी प्रतिष्ठा बढ़े। उसमें भले ही कागज अच्छी किस्मका लगाया जाये। यदि अंक संग्रहणीय हो तो अच्छा है। यदि उस अंकमें और इस अंकमें कुछ वाक्योंको सुधारना आवश्यक हो तो महादेव अथवा स्वामी सुधार लें। वे मुझे यह सूचना भी दें कि हर बार इतनी ही सामग्री काफी होगी अथवा इससे अधिक। अंग्रेजीकी समूची सामग्री तो कल भेजूंगा ही। यदि आवश्यक जान पड़ा तो कुछ मंगलवारको भेजूंगा।

नवजीवन' तथा 'यंग इंडिया' के ग्राहकों की संख्या के सम्बन्धमें मुझे समय-समयपर सूचित करते रहना।

मुझे काठियावाड़, शेष गुजरात, बम्बई—इसे मैं शेष गुजरातमें ही रखता —हूँ और अहमदाबादके ग्राहकों की संख्या तुरन्त भेजना। फेरीवाले रास्तोंमें कितने अखबार बेच लेते हैं और देशके अन्य भागोंमें कुल कितने ग्राहक हैं, इसके आँकड़े भी भेजना। मैं इन अंकोंसे यह निश्चय करूँगा कि अखबारकी बिक्रीसे ५०,००० रुपयेकी जो बचत हुई है उसका विभाजन कैसे किया जाये।

मूल गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ७७५६) से।
 

३१४. तार : के॰ एम॰ पणिक्करको

[९ अप्रैल, १९२४ या उसके पश्चात्][१]

जत्थेके शान्तिपूर्ण आत्मसमर्पणपर मेरी बधाई।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ९९५७) की फोटो-नकलसे।
  1. यह तार पणिक्करके ८ अप्रैलको प्रेषित और ९ अप्रैलको प्राप्त निम्न तारके उत्तरमें भेजा गया था: "तीसरे जत्थेने शान्तिपूर्वक आत्म-समर्पण किया।"