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३१५. टिप्पणियाँ
सत्याग्रह सप्ताह

पाठकोंको यह याद दिलानेकी जरूरत नहीं कि यह सप्ताह पवित्र सत्याग्रह सप्ताह है। ६ अप्रैल, १९१९ को रविवारके दिन ही रौलट कानूनके पास किये जानेपर विरोध प्रकट करनेके लिए पहली अखिल भारतीय हड़ताल की गई थी। इसी दिन समस्त देशमें हजारों स्त्री-पुरुषोंने चौबीस घंटेका उपवास रखा था। इसी पवित्र दिनको राष्ट्रने हिन्दू-मुस्लिम एकताकी आवश्यकताको अभूतपूर्वं दृढ़तासे स्वीकार किया था और हिन्दू, मुसलमान, सिख, पारसी, ईसाई और अन्य लोगों में हार्दिक सहयोगकी भावना उत्पन्न हुई थी। इसी दिन समस्त देश में प्रतिशोधसे प्रेरित होकर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जीवनकी एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकताके रूपमें, स्वदेशी भावनाका जन्म हुआ था। [और एक हफ्ते बाद] १३ तारीखको जलियाँवाला बागका हत्याकाण्ड हुआ था। हम इन दोनों दिनोंको और इनके बीचके दिनोंको प्रतिवर्ष आत्मशुद्धि, आत्म-निरीक्षण, विभिन्न वर्गोंके पारस्परिक सम्बन्धोंमें सुधार और स्वदेशी के प्रचारके लिए, जिसका केन्द्र-बिन्दु धीरे-धीरे चरखा बनता जा रहा है, मनाते आये हैं। मुझे एक मित्रसे यह जानकर दुःख हुआ कि अमृतसर में, जहाँ यह जघन्य दुःखद काण्ड हुआ था, इस सप्ताहका आयोजन पिछले वर्ष बहुत ही फीका रहा। देखना है इस वर्ष अमृतसर और भारतके अन्य स्थानोंमें लोग इसे किस तरह मनाते हैं।

क्या मैंने बेजा किया?

सौभाग्यसे मुझे ऐसे मित्र प्राप्त हैं जो यदि मैं सत्पथसे च्युत होने लगूँ या उसकी सम्भावना दिखाई दे तो वे मुझे विचलित नहीं होने देते। ऐसे एक मित्रका खयाल है कि मैंने पिछले अंकोंमें अपने पाठकोंके नाम पत्रमें[१] बम्बईकी सरकारके साथ पूरा इन्साफ नहीं किया है। बम्बई सरकारने मेरी चिकित्साका अच्छेसे अच्छा प्रबन्ध किया और मित्रों आदिको स्वतन्त्रतापूर्वक मुझसे मिलने देनेकी सुविधा करके पूर्ण स्वस्थ होनेका रास्ता सुगम किया, मैंने उसे इसके लिए धन्यवाद नहीं दिया है। मेरे मित्रकी रायमें सरकारका यह व्यवहार उसके हृदय परिवर्तनका परिचायक था और इसका कारण था बम्बई में नये गवर्नर की नियुक्ति। इस दलीलपर मैंने गहराईसे विचार किया है। इच्छा न रहते हुए भी, मैं अपने इसी मतपर स्थिर रहनेके लिए विवश हूँ कि सर्वोत्तम औषधोपचार तथा मित्रोंके मिलने आनेकी सुविधा कर देने के लिए मेरा सरकारके प्रति अनुगृहीत होना आवश्यक नहीं है। सरकार जब-जब अपने कर्त्तव्यका पालन करे तब-तब उसे धन्यवाद देना जरूरी होता हो तो बात दूसरी है। मैंने यह बात पर्याप्त रूपसे स्वीकार की है कि सरकारने मेरी बीमारीमें एक कैदी के

  1. देखिए "यंग इंडियाके नये और पुराने पाठकोंसे", ३-४-१९२४।