पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/४७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३२४. पत्र : महादेव देसाईको

[१० अप्रैल, १९२४ के पश्चात्][१]

भाईश्री महादेव,

इसके साथ 'यंग इंडिया' की सामग्री भेजता हूँ। कुछ सामग्री तो तुम्हारे पास ही पड़ी है। इसमें जहाँ-जहाँ तुम्हें भूलें दिखाई दें वहाँ-वहाँ सुधार करनेमें संकोच न करना।

इस सप्ताह के अंकमें यह वाक्य अशुद्ध है। "माई पर्पज इज़ टू शो दैट मिस्टर वैदरलीज व्यू ऑफ इंडियन नॉन को-ऑपरेशन कैन नॉट फेल टू बी ऑफ जनरल इन्टरेस्ट।"[२] इस वाक्यका अर्थ कुछ नहीं होता। यह वाक्य इस तरह होना चाहिए : "माई पर्पज मि॰ डब्ल्यूज़ व्यू इज़ आलटुगेदर रॉग। हिज व्यू, रांग दो इट इज, कैन नॉट फेल टू बी ऑफ जनरल इन्टरेस्ट।" असलमें तो दूसरे वाक्यको निकाल दें तो भी कोई हर्ज नहीं। यह यहाँ गैरजरूरी ही है। किन्तु 'जनरल इन्टरेस्ट' की बात लिखी है इसलिए मैंने उसे कायम रखते हुए यह बताया है कि तुम ऐसे अर्थहीन वाक्योंको कैसे सुधार सकते हो। इस सम्बन्धमें यहाँ सावधानी तो रखी जा सकती है, किन्तु मैं देखता हूँ कि फिर भी भूलें रह जाती हैं। मेरी सलाह यह भी है कि तुम भूलोंको सुधारकर 'यंग इंडिया' की फाइल रखो, जिससे गणेशन्[३] अथवा कोई दूसरा उसके लेखोंको फिर छापे तो उनका शुद्ध पाठ ही छपे।

हमें 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' की ग्राहक संख्या में वृद्धि न होनेसे चिन्ता करनेकी जरूरत नहीं है। ५०,०००[४] रुपयेकी रकमका खयाल किसीने नहीं किया है, क्योंकि सभी लोग घबरा गये हैं। इस उदाहरणका अनुकरण करनेके लिए भी लिखना चाहिए न? किन्तु यह कैसे लिखा जा सकता है? हमारी जानकारीमें तो हमारे पत्र जिस तरह निकलते हैं उस तरह कोई पत्र कहीं नहीं निकलता। इसलिए तत्सम्बन्धी टिप्पणी के न होनेका अफसोस मत करना।

बापूके आशीर्वाद

  1. दूसरे अनुच्छेदमें उद्धृत अंग्रेजीका वाक्य १०-४-१९२४ के यंग इंडिया में प्रकाशित हुआ था। देखिए "असहयोग हिंसाका तरीका नहीं है", पृष्ठ ४३३-३६।
  2. मेरा हेतु यह बताना है कि भारतीय असहयोग आन्दोलनके सम्बन्धमें श्री वैदरलीका विचार बिलकुल गलत है। किन्तु गलत होते हुए भी वह मोटे तौरपर रोचक अवश्य जान पड़ेगा।"
  3. मद्रासकी गणेशन एंड कं॰ जिसने गांधीजीके यंग इंडिया में प्रकाशित १९१९ से १९२२ और १९२२ से १९२४ तकके लेख छापे थे।
  4. यह रकम नवजीवनकी आयमें से ५ सालमें बची थी; देखिए "नवजीवनके पाठकोंसे", ६-४-१९२४।