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३२८. तार : जॉर्ज जोजेफको

[अन्धरी
११ अप्रैल, १९२४ या उसके पश्चात्][१]

जॉर्ज जोजेफ,
कोचीन

अनशन न किया जाये लेकिन लोग बारी-बारी से जत्थे शान्ति और विनयके साथ खड़े या बैठे रहें जबतक कर लिये जायें।

अंग्रेजी प्रति (सी॰ डब्ल्यू॰ ५१७४) से।
सौजन्य : कृष्णदास।
 

३२९. पत्र : जॉर्ज जोजेफको

प्रातः ४-३० बजे
शनिवार, १२ अप्रैल, १९२४

प्रिय जोजेफ,

ऊपर उस तारका मसविदा[२] है, जो तुम्हारे तारके उत्तर में मैंने भेजा है। सत्याग्रहमें अनशन करनेकी कुछ सुनिश्चित सीमाएँ हैं। तुम किसी अत्याचारीके विरोध में अनशन नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना उसके प्रति हिंसाके समान होगा। तुम उसके आदेशों के उल्लंघनके लिए उससे दण्ड पानेकी आशा रखते हो, परन्तु जब वह सजा देने से इनकार कर दे और ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दे कि उसे सजा देनेको विवश करने के खयालसे उसके आदेशों का उल्लंघन करना तुम्हारे लिए असम्भव हो जाये तब तुम अपने-आपको दण्डित नहीं कर सकते। अनशन तो किसी प्रेमी के विरुद्ध ही किया जा सकता है और सो भी अधिकार प्राप्त करनेकी दृष्टिसे नहीं बल्कि उसको सुधारनेके खयालसे—वैसे ही जैसे कोई पुत्र अपने शराबी पिताके विरुद्ध अनशन करता है। बम्बईमें और उसके बाद बारडोलीमें मैंने जो अनशन किया था, वह

  1. ११ अप्रैलको जोजेफने गांधीजीको तार द्वारा खबर भेजी थी कि वाइकोमके सत्याग्रहने नया रूप धारण कर लिया है और पुलिस लोगोंको वहाँतक पहुँचने नहीं दे रही है। उन्होंने यह भी सूचित किया था कि सत्याग्रहियोंको गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है और वे अब अनशन करने लगे हैं। उन्होंने गांधीजी से सलाह भी माँगी थी कि यदि इस तरीकेमें परिवर्तन आवश्यक समझें तो वैसी सूचना दें।
  2. देखिए पिछला शीर्षक। उक्त तार और यह पत्र एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाको दूसरे ही दिन भेज दिये गये थे।

२३–२९