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भाईश्री महादेव,

३२७. पत्र : महादेव देसाईको

शुक्रवार [११ अप्रैल, १९२४][१]

पहली भूल गोलिकेरेने की। उसके बाद मैंने, और कहा जा सकता है कि उसके बाद तुमने की। तुम तो यही मान लेते हो कि हर बातमें मैं तुम्हारा ही दोष देखता हूँ। मैंने गोलिकेरेको अपने ही नामसे कार्ड लिखने को कहा था। उसने यह समझा कि उसे यह चिट्ठी मेरे नामसे लिखनी है और उसपर मेरे हस्ताक्षर कराने हैं। जब मैंने यह देखा कि उसने तो यही मान लिया कि मैं कोई विशेष कारण न होते हुए भी तुम्हें अंग्रेजीमें लिखूँगा और वह पत्रको टाइप करके और उसे मेरी सहीके लिए रखकर घर चला गया है तब मैंने उसपर अपने हस्ताक्षर तो कर दिये, किन्तु उसपर यह टिप्पणी भी लिख दी कि 'यह भूल हुई।' मैंने यह सोचा था कि इसमें जो विनोद है उसे तुम समझ लोगे। उसके बाद मुझे तुम्हारे 'किंगडम ऑफ हैवन' सम्बन्धी पत्रकी याद आई। पत्रमें उसका अर्थ लिखनेके लिए पर्याप्त स्थान छूटा हुआ था; इसलिए मैंने उसका अर्थ वहाँ लिख दिया। इस अर्थका पत्रमें लिखी बातसे कोई सम्बन्ध ही नहीं था। मैंने तुम्हारा गुजराती अनुवाद तो पढ़ा ही नहीं था। मैंने यह केवल तुम्हारे पत्रको ध्यान में रखकर ही लिख दिया था। मैंने तुम्हारा अनुवाद तो अभी तक नहीं पढ़ा है। अब सब बातें स्पष्ट हो गई न? इसमें गोलिकेरेने पहले भूल की। इसके बाद मैंने भूल की, क्योंकि मैंने जो कुछ लिखा उससे तुम्हें भ्रम हुआ। फिर मानें तो तुमने भूल की, क्योंकि तुम मेरा अर्थ नहीं समझ सके और तुमने मेरी टिप्पणीका गलत अर्थ निकाला। तुमने 'किंगडम ऑफ अर्थ' के विरुद्ध 'किंगडम ऑफ हैवन' का अर्थ ठीक ही किया है। फिर भी चूंकि मैंने अभी उसे ठीक-ठीक नहीं पढ़ा है इसलिए निश्चित रूपसे नहीं कह सकता। मोक्ष इत्यादिकी चर्चा अभी तो नहीं की जा सकती।

कौंसिल प्रवेश के सम्बन्धमें मैंने अबतक के अपने विचारोंको लिखित रूप दे दिया है।[२] उसकी एक प्रति में तुम्हें भेज रहा हूँ। इस प्रतिको वल्लभभाईको भी पढ़वा देना। काका[३] और अन्य लोगों को भी पढ़नेको दे देना। उसके पश्चात् तुम्हें जो विचार प्रकट करना हो वह करना।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ८७२५) की फोटो-नकलसे।
  1. देखिए "पत्र : महादेव देसाईंको", ४-४-१९२४को पाद-टिप्पणी २
  2. देखिए पिछला शीर्षक।
  3. काका कालेलकर।