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अध्यापक और वकील
देश-कार्यके उत्साहमें यह असन्तोष बाधक हो जाता है। खादी मिलके कपड़ेसे महँगी पड़ती है और हमारे पास उतना पैसा नहीं है। कांग्रेसके प्रतिनिधि निर्वाचित हो जानेपर भी सफर-खर्च न होनेके कारण हम अधिवेशनोंमें शरीक नहीं हो पाते अथवा हमें प्रतिनिधि होनेसे इनकार करना पड़ता है। ऐशो-आरामके लिए नहीं, हमें अपनी दैनिक जरूरतोंके लिए रुपया कमाना ही पड़ता है। परन्तु कांग्रेस के कारण हमारे रास्ते रुक गये हैं।
मुझपर अपने कुटुम्बके भरण-पोषणका भार है और मेरा शरीर कमजोर है, इससे ग्रामोंमें प्रचार कार्यकी कठिनाइयोंको में बरदाश्त नहीं कर सकता। कांग्रेसका अब लगभग कुछ काम-धाम बचा भी नहीं है। मेरी समझमें कांग्रेसको कार्यकर्त्ताओंके निर्वाहको व्यवस्था करनी चाहिए। वह उन्हीं लोगोंको अपने काममें रोके जिनकी गुजरका भार वह उठा सकती हो। दूसरे सब लोगोंको इस बातकी आजादी दे दे कि वे गुजरके लिए जो काम करना चाहें, करें; पर करें देश-सेवाकी दृष्टिसे ही और अपनेको ऐसा (अनियमित सेनाका) सिपाही मानें, जो जब जरूरत पड़े देशकी पुकारपर लड़नेके लिए सामने आ जायें। ऐसे लोग सरकारी और अर्ध-सरकारी पाठशालाओंमें काम करेंगे और वहाँकी पाठ्यपुस्तकों को देश सेवाको दृष्टिसे पढ़ायेंगे। वे वकालत करेंगे और पग-पगपर लोगों को समझायेंगे कि अदालतमें कितना समय और धन बरबाद होता है; वे फौज में भरती होंगे और अपने भाइयोंपर गोली चलानेसे इनकार करेंगे, इत्यादि। मुझे पता नहीं कि पूर्ण रूपसे तन्दुरुस्त हो जानेपर आप क्या करेंगे। इस बीच में आपकी सलाह चाहता हूँ। मेरा खयाल है कि यहाँको राष्ट्रीय पाठशालाका—जिसकी न तो लोग कद्र करते हैं, न जिसे चलानेके लिए वे तैयार हैं, प्रधान अध्यापक रहकर में जनता या देशकी कोई बड़ी सेवा नहीं कर रहा हूँ। इसकी अपेक्षा यदि कानूनका अध्ययन करके, वकील बनकर मातृभूमिकी थोड़ी-बहुत सेवा करूँ तो कैसा हो? क्या आप कांग्रेसके इन बहिष्कारों को रद करके स्वराज्य प्राप्त करनेके दूसरे साधन अपनानेकी सलाह देंगे? या आप इन्हीं बहिष्कारों को उसी जोर-शोर के साथ फिर चलाना चाहते हैं? क्या हम लोग प्रतीक्षा करें?
पुनश्च : असहयोग अन्तरात्मा और धर्मका प्रश्न नहीं है। मैं तो उसे एक साधन मात्र समझता हूँ।

मुझे पत्र भेजनेवाले तथा मुझसे मिलने आनेवाले सज्जन विद्यालयों और अदालतों के बहिष्कार के खिलाफ जो दलीलें पेश करते हैं, उनका सार पूर्वोक्त पत्रमें आ जाता है। बिच्छूका डंक उसकी दुममें होता है। यही बात इस दलीलके सम्बन्ध में समझनी चाहिए। लेखककी बहिष्कार-विषयक अश्रद्धा 'पुनश्च' में प्रकट होती है। अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितिमें किसी साधनपर अडिग रहनेके लिए साधनको

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