पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/५४३

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३६०. तार : के॰ एम॰ पणिक्करको

[२१ अप्रैल, १९२४ या उसके पश्चात्][१]

मुफ्त भोजनालयोंका चालू किया जाना ठीक नहीं जान पड़ता। पत्र भेज रहा हूँ।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १०२८८) की फोटो-नकलसे।
 

३६१. पत्र : महादेव देसाईको

बुधवार [२३ अप्रैल, १९२४][२]

भाईश्री महादेव,

इसके साथ गुजराती सामग्री है। वल्लभभाईने तुम्हारा भेजा हुआ बण्डल मुझे दे दिया है। किन्तु मैं उसमें से आज तो कुछ भी नहीं ले रहा हूँ। तुमने वीस-नगरकी घटनाका जो वर्णन किया है वह भाषाकी दृष्टिसे सुन्दर है। विषय-वस्तुकी दृष्टिसे वह आँखों में आँसू ला देनेके लिए पर्याप्त है। किन्तु मैंने तो अपना हृदय पत्थरका बना लिया है। इस दृष्टिसे तो हम इस संसारमें चींटीसे भी तुच्छ हैं। चींटी हमें अपनी निगाह में तुच्छ लगती है और ईश्वरकी दृष्टिमें हम स्वयं कैसे हैं? फिर हम कीटाणु-जैसे तुच्छ जीव किसी वस्तुको देखकर कैसे प्रसन्न हों अथवा रोयें?

एक मुसलमानने 'प्रजामित्र' में मेरे नाम एक खुली चिट्ठी प्रकाशित की है। इसमें जहर तो है ही, किन्तु एक अच्छी सलाह भी है। उसने लिखा है कि आप दोनों जातियों में शान्तिका प्रसार नहीं कर सकते तो चुप होकर क्यों न बैठ जायें और तमाशा देखते रहें। 'मेरी भाषा' लेखको पहले पढ़ लेना। 'शिखर निवासी' कौन है यह तो तुम जानते ही हो। वालजीने 'नवजीवन' कितने परिश्रम से पढ़ा है? उन्होंने जो सुधार किये हैं उनमें से अधिकतर हमें लज्जित करनेवाले हैं। यदि 'नवजीवन' के लेखोंको तुम पहले पढ़ लेते हो तो इन दोषोंके सम्बन्धमें मैं निश्चय ही तुम्हें उत्तरदायी मानूँगा। किन्तु मुझे कुछ ऐसा खयाल है कि तुमने इन लेखोंको छपने से पहले नहीं पढ़ा। तुमने तो उन्हें छपने के बाद ही पढ़ा। तब इन लेखोंको किसने पढ़ा? यदि इनको आनन्दस्वामीने भी न पढ़ा हो तो इसके लिए उत्तरदायी

  1. यह तार श्री के॰ एम॰ पणिक्करके २१ तारीखको प्राप्त निम्नलिखित तारके उत्तरमें भेजा गया था : "शिरोमणि समितिने निश्चय किया है कि लंगर खोल दिया जाए। वाइकोम जत्था शीघ्र ही रवाना होनेवाला है। आशा है आपकी स्वीकृति प्राप्त होगी।"
  2. इस पत्र में उल्लिखित "मेरी भाषा" शीर्षक लेख २७-४-१९२४ के नवजीवनमें छपा था। इससे पहले बुधवार २३ अप्रैलको पड़ता था।