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वाइकोम सत्याग्रह

बदलना चाहते हैं तो उन्हें उनके अपमानों तथा बुरे बरतावका खयाल न करके उनसे प्रेम ही करना चाहिए।

एक तार आया है जिसका आशय है, "अधिकारी सड़कोंपर बाड़ लगा रहे हैं। क्या हम उन्हें तोड़ या लांघ नहीं सकते? क्या हम अनशन नहीं कर सकते? हम देखते हैं कि अनशनका प्रभाव पड़ता है।"

मेरा उत्तर यह है कि यदि हम सत्याग्रही हैं, तो हम कदापि बाड़को तोड़ या लांघ नहीं सकते। ऐसा करें तो जेल तो मिल जायेगी, किन्तु इसे सविनय अवज्ञा नहीं कहा जा सकता। ऐसा करना तत्त्वतः अविनयपूर्ण और अपराधयुक्त होगा। और हम अनशन भी नहीं कर सकते। मैं देखता हूँ कि श्री जोजेफको लिखे गये मेरे अनशन-सम्बन्धी पत्रसे भ्रम हुआ है। पाठक यहींके यहीं उसे देख सकें इसलिए मैं उसका सम्बद्ध अंश यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ :

अनशन न किया जाये लेकिन लोग बारी-बारीसे जत्थे बाँधकर तबतक शान्ति और विनयके साथ खड़े या बैठे रहें जबतक कि वे गिरफ्तार न कर लिये जायें।
ऊपर उस तारका मसविदा है, जो तुम्हारे तारके उत्तरमें मैंने भेजा है। सत्याग्रहमें अनशन करनेकी कुछ सुनिश्चित सीमाएँ हैं। तुम किसी अत्याचारीके विरोध में अनशन नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना उसके प्रति हिंसाके समान होगा। तुम उसके आदेशोंके उल्लंघनके लिए उससे दण्ड पानेकी आशा रखते हो, परन्तु जब वह सजा देनेसे इनकार कर दे और ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दे कि उसे सजा देने को विवश करनेके खयालसे उसके आदेशोंका उल्लंघन करना तुम्हारे लिए असम्भव हो जाये, तब तुम अपने-आपको दण्डित नहीं कर सकते। अनशन तो किसी प्रेमीके विरुद्ध ही किया जा सकता है। और सो भी अधिकार प्राप्त करनेकी दृष्टिसे नहीं बल्कि उसको सुधारने के खयालसे—वैसे ही जैसे कोई पुत्र अपने शराबी पिताके विरुद्ध अनशन करता है। बम्बई में और उसके बाद बारडोलीमें मैंने जो अनशन किया था, वह इसी श्रेणीमें आता है। मैंने अनशन उन लोगोंको सुधारनेके लिए किया जो मेरे प्रति प्रेम रखते थे। परन्तु मैं जनरल डायर-जैसे किसी व्यक्तिको सुधारने के लिए अनशन नहीं करूँगा। वे मेरे प्रति प्रेमभाव नहीं रखते; इतना ही नहीं, वे अपने को मेरा शत्रु भी मानते हैं। बात तुम्हारी समझमें आ गई होगी?[१]. . .

यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि ऊपर कही गई बातें चालू भाषामें कही गई है। 'अत्याचारी' और 'प्रेमी' शब्दोंका प्रयोग भी सामान्य अर्थमें है। अन्याय करनेवाले को 'अत्याचारी' की संज्ञा दी गई है और जिसे आपसे सहानुभूति है, उसे 'प्रेमी' कहा गया है। मैंने यहाँ वाइकोम आन्दोलन में सुधारके विरोधियोंको 'अत्याचारी' माना है। शासनतन्त्रपर यह शब्द लागू हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। इस सम्बन्धमें मैंने शासनतन्त्रको केवल शान्ति बनाये रखने की चेष्टा करने-

  1. देखिए "पत्र : जॉर्ज जोसेफको", १२-४-१९२४