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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
जब वे अपने-आपको इससे मुक्त कर पायेंगे तब इसका गौरव मिलेगा भी उन्हींको। हिन्दू के रूपमें एक भी शुद्ध हिन्दूका मूक और प्रेम-प्रेरित कष्टभोग लाखों हिन्दुओंके हृदयोंको पिघला देनेके लिए काफी होगा। किन्तु अछूतोंके पक्ष में हजारों अहिन्दुओंका कष्टभोग भी हिन्दुओंपर कोई असर नहीं करेगा। उनकी इस ओरसे मुंदी हुई आँखें बाह्य हस्तक्षेपसे नहीं खुलेंगी, चाहे वह कितना ही सद्भावपूर्ण और उदारतापूर्ण क्यों न हो; क्योंकि उससे उन्हें अपने अपराधकी पूरी प्रतीति नहीं होगी। उलटे सम्भव है, बाह्य हस्तक्षेपसे इस पापको वे और भी उत्कट रूपसे अपना लें। कोई भी सुधार सच्चा और स्थायी तभी होता है जब वह भीतरसे प्रादुर्भूत हो।
[किन्तु प्रश्न किया गया है] कि वाइकोमके सत्याग्रही बाहरसे आर्थिक सहायता क्यों न प्राप्त करें, विशेषतः जब वह हिन्दुओंसे प्राप्य हो? जहाँतक अहिंदुओंकी सहायताका प्रश्न है, इस प्रकार बाहरसे उनके द्वारा भेजी गई आर्थिक सहायताके बारेमें मेरे विचार उतने ही स्पष्ट हैं, जितने उनकी शारीरिक सहायताके बारेमें हैं। मुझे अहिन्दुओंके पेसेसे हिन्दू मन्दिरका निर्माण नहीं करना चाहिए। यदि मुझे पूजा-स्थान आवश्यक लगता है तो मुझे स्वयं उसके लिए पैसा खर्च करना चाहिए। अस्पृश्यता-निवारण ईंट और चूने का मन्दिर बनानेकी अपेक्षा अधिक बड़ा काम है। उसके लिए खून-पैसा, सब-कुछ हिन्दुओंको ही देना चाहिए। उन्हें इस अभिशापको मिटाने के लिए अपनी पत्नी, अपने बच्चे और अपने सर्वस्वका त्याग करनेके लिए तैयार हो जाना चाहिए। जहाँतक बाहरके हिन्दुओंकी आर्थिक सहायता स्वीकार करनेका प्रश्न है, इससे यही प्रकट होगा कि स्थानीय हिन्दू इस सुधारके लिए उद्यत नहीं हैं। यदि सत्याग्रहियोंको स्थानीय हिन्दुओंकी सहानुभूति प्राप्त है, तो जितने धनकी आवश्यकता हो, वह उन्हें स्थानीय रूपसे ही इकट्ठा करना चाहिए। यदि उन्हें उनकी सहानुभूति प्राप्त नहीं है, तो जो मुट्ठी भर व्यक्ति सत्याग्रह करते हैं उन्हें भूखे रहने में ही सन्तोष मानना होगा। यदि वे इसमें सन्तोष नहीं मानते हैं तो स्पष्ट है कि वे स्थानीय हिन्दुओंमें, जिनका वे हृदय परिवर्तन करना चाहते हैं, कोई सहानुभूति उत्पन्न न कर पायेंगे। सत्याग्रह हृदय परिवर्तनकी प्रक्रिया है। मेरा विश्वास है कि सुधारक अपने विचारोंको समाजपर लादनेकी बजाय उसके हृदयको छूनेका प्रयत्न करते हैं। यदि मैं सत्याग्रहकी पद्धतिको प्रेमकी प्रक्रिया कहूँ, तो बाह्य आर्थिक सहायता उसमें अवश्य ही बाधक होगी। इस दृष्टिसे में सिखोंके लंगर खोलने के प्रस्तावको वाइकोमके डरे हुए हिन्दुओंके लिए एक खतरा ही मानता हूँ।
मेरे मनमें इस विषय में कोई सन्देह नहीं है कि रूढ़िवादी हिन्दू, जो अभीतक यह मानते हैं कि भगवान् की पूजा करने और अपने ही धर्म-बन्धुओंके एक समाज विशेषको छूना परस्पर असंगत है तथा जो यह सोचते हैं कि सारा धार्मिक जीवन नहाने-धोने और शारीरिक अशुद्धिसे बचनेमें ही निहित है, वाइकोम आन्दोलनकी घटनाओंसे भयभीत हैं। वे समझते हैं कि उनका धर्म खतरे में है। अतः आयोजकोंको यह उचित है कि वे अत्यन्त रूढ़िवादी तथा अत्यन्त कट्टरपन्थियोंको भी सान्त्वना दें और उन्हें आश्वस्त कर दें कि वे बलपूर्वक सुधार नहीं करना चाहते। विजय प्राप्त करनेके लिए वाइकोम सत्याग्रहियोंको नम्र होना चाहिए। यदि वे कट्टर हिन्दुओंके हृदयोंको