पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/५९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५६०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विधुर रहने की आवश्यकता है, ऐसा कहकर ऐसी बालिकाओंको विधवा रखनेका प्रतिपादन किया जाता है तब ऐसा करनेवाले लोग अनर्थं तो करते ही हैं, उसके साथ-साथ उद्धतता दिखाते हैं और घोर अज्ञान प्रकट करते हैं ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ४–५–१९२४
 

३८९. कौन बचायेगा?

'त्याग की मूर्ति' लेख लिखने के बाद मुझे उपर्युक्त पत्र[१] मिला है। हिन्दुस्तान में ऐसी घटनाएँ होती ही रहती हैं। जो वृद्ध पुरुष अपनी विषयवासनाके वशीभूत होकर एक बालिकाके जन्मको बिगाड़ने के लिए तैयार बैठा है उसे एकाएक समझाना मुश्किल है। बालिका के पिताको, जिसे पैसा मिलनेकी सम्भावना है, अपनी बच्ची के हितकी बात किस तरह समझाई जा सकती है? जहाँ वासना और स्वार्थ व्यक्तिकी आँखों पर पट्टी बांध दें वहाँ उन्हें खोलनेवाला कहाँसे मिल सकता है? तथापि यदि जातिके पंच लोग चाहें तो इस गरीब गायको बचा सकते हैं। पंच कुछ करने को तैयार न हों तो जो इस परोपकारके कार्यको करना चाहें उन्हें पंचोंसे बीच में पड़नेका अनुरोध करना चाहिए। वह भी न हो सके तो जो लोग इस घोर कृत्यको होनेसे रोकना चाहते हों उन्हें विनयपूर्वक लड़कीके पिताको और उसी तरह विवाह करनेवाले को भी समझाना चाहिए। वे इन दोनों व्यक्तियोंका त्याग तो अवश्य करें। उनके भोजन आदिके कार्य में भाग न लें और ऐसा करके स्वयं इस पापके भागीदार होने से बचें। जिस समाज में ऐसे अपराध होते हों उसमें सारे समाजका दोष माना ही जाना चाहिए, क्योंकि जिस वस्तुके विरुद्ध तीव्र सामाजिक लोकमत हो उस वस्तुको करनेकी धृष्टता एकाएक कोई नहीं करता। और जहाँ समाजकी परवाह किये बिना उद्धततासे कोई व्यक्ति समाजकी मर्यादाका उल्लंघन करता है वहाँ समाजके पास शान्त असहयोग रूपी सुन्दर हथियार है और उसकी मदद से समाज दोषमुक्त बन सकता है।

[गुजरातीसे]:
नवजीवन, ४-५-१९२४
  1. पत्र यहीं नहीं दिया गया है; पत्र-लेखकने उसमें पचास वर्षके एक वृद्धको अल्पवयकी एक बालिकासे विवाह करनेके अपने विचारको छोड़ देनेके लिए समझानेके अपने असफल प्रयत्नका वर्णन किया था।