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३९०. हिन्दू और मुसलमान

हिन्दुओं और मुसलमानोंमें जो कटुता फैल गई है मैं उसके सम्बन्धमें अपने विचारोंको प्रकट करनेके लिए तैयार नहीं था और न अभी हूँ। मेरे विचार तो निश्चित हो चुके हैं; परन्तु मित्रोंके सुभीते के लिए मैंने अभी उन्हें प्रकट नहीं किया है। इस ढिलाईका कारण यह है कि वे अभी विचार कर रहे हैं, परन्तु वीसनगरमें जो घटना घटी है, मैं उसके सम्बन्ध में बिलकुल चुप नहीं रह सकता। यदि मुझे पत्रका सम्पादन करना है तो मौका आनेपर अपने विचार अवश्य प्रकट करने चाहिए।

अब्बास साहब और श्री महादेव देसाईने वीसनगर जाकर किस प्रकार समझौता करानेका प्रयत्न किया था और वह किस प्रकार बेकार हुआ, इसका हृदयभेदक विवरण श्री महादेव देसाईने मुझे दिया है। इससे मालूम होता है कि हिन्दुओंने रामनवमी के दिन रामजीका जुलूस निकाला। बाजे बजते जा रहे थे। जुलूस जब मस्जिद के नजदीक आया तब मुसलमान नंगी तलवारें लिये मुकाबला करनेके लिए तैयार खड़े नजर आये। जुलूस वहाँसे लगभग चौबीस घंटे बाद पुलिसके संरक्षण में गुजर सका। मैं दूसरी बातें छोड़े देता हूँ। हिन्दू बाजे बजाने का अपना हक नहीं छोड़ते थे और मुसलमान बाजे बजाने नहीं देते थे। फिर भी ज्यों-त्यों करके दंगा तो होने से रुक गया। परन्तु इसका श्रेय उनमें से किसी भी पक्षको नहीं दिया जा सकता। श्रेयकी पात्र तो अकेली पुलिस है।

अब ऐसी खबर मिली है कि किसीने कुछ पशुओंको लुक-छिपकर तलवारसे जख्मी कर दिया है और मालूम हुआ है कि एक पशु तो मर भी गया है। हिन्दुओं मुसलमानोंसे अपने सम्बन्ध तोड़ लिये हैं।

जुलूसकी घटना के बाद वीसनगरके एक प्रख्यात सज्जन श्री महासुखलाल चुन्नीलालने एक तीखा भाषण दिया। इसमें उन्होंने सफेद टोपीवालोंको सम्बोधित करके कहा कि वे जो चाहें प्रयत्न करें, परन्तु हिन्दू-मुस्लिम एकता नहीं हो सकती। श्री महासुखलालने हिन्दुओंको असहयोग करने की सलाह दी है।

वीसनगर में हिन्दुओं की संख्या मुसलमानोंसे बहुत ज्यादा है। फिर भी वे मुसलमानोंसे बहुत डरते हैं। और मुसलमान अपनी तलवार म्यान में रखना नहीं चाहते।

मैं मानता हूँ कि ऐसा कोई अचल धार्मिक नियम नहीं है कि धार्मिक जुलूसके बाजे एक दफा बजने शुरू होने के बाद लगातार बजते ही रहने चाहिए। मैं यह भी मानता हूँ कि मुसलमान भाइयों के भावोंको आघात न पहुँचे, इसलिए कुछ खास मौकोंपर बाजे बन्द कर देना हिन्दुओंका फर्ज है। परन्तु में यह भी उतनी ही दृढ़तासे मानता हूँ कि मुसलमानोंकी तलवारसे डरकर बाजे बन्द करना अधर्म है। जिस प्रकार हिन्दू मुसलमानोंको दबाकर उन्हें गोवध करने से नहीं रोक सकते उसी प्रकार मुसलमान भी हिन्दुओंसे जबरन बाजे बन्द नहीं करा सकते। यदि दोनोंको मित्रता प्यारी हो तो दोनों अपनी-अपनी गरजसे गोवध और बाजे बन्द कर दें। मैं यह भी मानता हूँ कि यदि

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