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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक अपना फर्ज न अदा करे तो दूसरेको अपने फर्जसे न चुकना चाहिए। परन्तु दोमें से एक भी तहस-नहस हो जानेपर भी तलवारके सामने सिर न झुकाये नहीं झुका सकता और न उसे झुकाना ही चाहिए।

मौका आनेपर शान्तिपूर्ण असहयोग करनेका अधिकार प्रत्येक व्यक्तिको है। ऐसी कोई बात नहीं है कि हम सरकारसे तो असहयोग कर सकते हैं; परन्तु आपसमें नहीं कर सकते। ऐसा भी नहीं है कि हिन्दू मुसलमानसे अथवा मुसलमान हिन्दू से तो असहयोग करे किन्तु एक हिन्दू दूसरे हिन्दूसे या एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से असहयोग न कर सके। सिद्धान्तकी बातमें बाप और बेटेमें भी असहयोग जरूरी हो सकता है।

परन्तु सवाल यह है कि ऐसा मौका वीसनगर के हिन्दुओं के सामने आया है नहीं। मेरी नम्र रायमें ऐसा मौका अभी नहीं आया है। गूढ़ और पेचीदा सवालका फैसला हर नगरके हिन्दू और मुसलमान खुदमुख्तार होकर नहीं कर सकते। नेता पक्षको भले इसका तात्कालिक नतीजा अच्छा मालूम हो परन्तु इसका स्थायी परिणाम बुरा ही होगा। फिर यह भी माननेका कोई कारण नहीं है कि एक पक्षकी जीत होनेपर उस पक्ष के दूसरे सहधर्मियोंको लाभ ही होगा। वीसनगरमें हिन्दू संख्या-बलमें अधिक होनेसे राज-बल अथवा असहयोगके बलसे मुसलमानोंको झुका लें तो इससे क्या हुआ? दूसरे नगरोंमें जहाँ स्थिति मुसलमानोंके अनुकूल होगी वहाँ वे हिन्दुओंको दबायेंगे। क्या यह बात वीसनगरके हिन्दुओंको अच्छी मालूम हो सकती है? यदि यह बात उन्हें अच्छी न मालूम होगी तो वीसनगरके मुसलमानोंकी हार दूसरे नगरोंके मुसलमानोंको कैसे अच्छी लगेगी? वीसनगरके हिन्दुओंका रास्ता आरम्भमें भले ही मीठा हो परन्तु परिणाममें वह जहरीला है; अतः वह 'गीता' के मतके[१] अनुसार त्याज्य है।

वीसनगरके हिन्दुओंसे मैं यह नहीं कहता कि वे दबकर अपना बाजे बजानेका हक छोड़ दें। मैं यह भी नहीं कहता कि वे कभी असहयोग न करें। परन्तु मैं नम्रतासे यह राय जरूर देता हूँ कि जो ब्योरा मुझे मिला है वह यदि ठीक हो तो हिन्दुओंके इस असहयोग में जल्दबाजी हो रही है। इसके पहले जो काम उन्हें करने चाहिए थे वे सब उन्होंने किये नहीं हैं। यदि उनमें समझदारी हो तो वे राजसत्ताकी सहायता कमसे-कम लें। मैंने सुना है कि वीसनगर में सत्ताधिकारियोंने अपना काम शान्ति और चतुराईसे निष्पक्ष होकर किया है। मैं यह बात तटस्थ हिन्दुओंसे मिले समाचारोंके आधारपर लिख रहा हूँ। तटस्थ मुसलमानोंके दिलोंपर क्या असर हो रहा है, मैं अभी यह नहीं जानता।

परन्तु हम तो राजसत्ताकी कमसे-कम सहायता लेना चाहते हैं। हम चार सालसे इस सिद्धान्तकी पुष्टि कर रहे हैं। अतः हमें यह विचार करने की जरूरत है कि हम राजसत्ताकी मध्यस्थताके अतिरिक्त अन्य क्या उपाय करें? वीसनगरके हिन्दुओंको फिलहाल मुसलमानोंकी तलवारका भय नहीं है। सत्ताधिकारियोंने उन्हें इस भयसे

  1. अध्याय १८, श्लोक ३७–३८।