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३९५. पत्र : मणिबहन पटेलको

रविवार [४ मई, १९२४ के पश्चात्][१]

चि॰ मणि,

तुम्हारा पत्र मिला। यह मेरा चौथा पत्र है। मैं एक पत्र और दो कार्ड लिख चुका हूँ। तुमने एक ही कार्डको पहुँच दी है।

आत्म-विश्वास सच्चा तब कहा जायेगा जब वह निराशाके समय भी अचल रहे। सत्य और अहिंसामें मेरा विश्वास हो तो मैं नाजुक समय में भी उनका पालन करूँगा। भले ही बुखार आये तो भी आशा हरगिज न छोड़ी जाये। हम गाफिल न रहें, परन्तु चिन्ता न करें। 'त्यागकी मूर्तिके' बारेमें तुम्हारी आलोचना देखनेको मैं आतुर हो रहा हूँ। मुझे पत्र लिखना हरगिज न भूलना।

तुम्हारे वहाँ और कोई आकर रह सके ऐसी गुंजाइश है क्या? वहाँ वसुमती बनको भेजने का जी होता है।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो : मणिवहेन पटेलने
 

३९६. पत्र : मणिबहन पटेलको

सोमवार, ५ मई, १९२४

चि॰ मणि,

कल तुम्हारे पत्रकी बाट उसी तरह देखी, जैसे पपीहा बरसातकी देखता है। आज सुबह प्रार्थनाके बाद तुम्हारा पहला पत्र देखा। देवदासने कहा कि कल शामको मणिबनका पत्र मिला।

भाई. . .लिखते हैं कि थकावट रहने पर भी वहाँ तबीयत यहाँसे अधिक अच्छी है। इसी तरह चलता रहे तो हम सब वहाँ आ जायेंगे। दुर्गाबहनकी तबीयत भी वहाँ ठिकाने आ जाये तो कितना अच्छा हो। उससे कहना कि मुझे पत्र लिखे। महादेवभाईको मद्रास नहीं भेजा। वे वापस साबरमती पहुँच गये हैं।

यहाँसे जो कुछ चाहिए वह मँगवा लेना। माँगे बिना तो माँ भी नहीं परोसती। सच तो यह है कि माँ ही नहीं परोसती, दूसरोंको शिष्टता दिखानी पड़ती है। माँको

  1. इस पत्रमें उल्लखित "स्थागकी मूर्ति" शीषक गुजराती लेख, ४ मई, १९२४ के नवजीवनमें प्रकाशित हुआ था।