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३९४. पत्र : जमनालाल बजाजको

पाम वन, जुहू
पो॰ अन्धेरी
रविवार [४ मई, १९२४ या उसके पश्चात्][१]

चि॰ जमनालाल,

तुमको दुःख हुआ उससे मुझे भी हुआ। मैंने उस खतमें[२] 'चिरंजीव' विशेषणका प्रयोग नहीं किया क्योंकि वह मैंने खुला भेजा था। उसमें 'चि॰' विशेषण सब लोग पढ़ें, यह उचित होगा या नहीं इसका निर्णय उस समय मैं नहीं कर सका। इससे मैंने 'भाई' शब्दका प्रयोग किया। तुम चि[रंजीव] होने के योग्य हो या नहीं, अथवा मैं पिताका स्थान लेने लायक हूँ या नहीं, इसका निर्णय कैसे हो? तुम्हें जैसे अपने बारेमें शंका है, वैसे ही मुझे अपने बारेमें है। यदि तुम अपूर्ण हो तो मैं भी अपूर्ण हूँ। पिता बनने से पहले मुझे अपने बारेमें ज्यादा विचार करना था। तुम्हारे प्रेमके वश होकर मैं पिता बना हूँ। ईश्वर मुझे इसके योग्य बनाये। यदि तुममें कमी रहेगी तो वह मेरे स्पर्शकी कमी होगी। इसका मुझे विश्वास है कि हम दोनों प्रयत्न करते हुए अवश्य सफल होंगे। इतनेपर भी यदि निष्फलता हुई तो वह भगवान्, जो कि भावनाका भूखा है और हमारे अन्तःकरणको देख सकता है, हमारी योग्यता के अनुसार हमारा फैसला करेगा। इसलिए जबतक मैं ज्ञानपूर्वक अपने अन्दर मलिनताको स्थान नहीं देता तबतक तुमको चिरंजीव ही मानता रहूँगा।

आज एक बजेतक मौन है। पं॰ सुन्दरलालको छः बजे आनेको कहा है। उनसे मिलनेके बाद यदि तुम्हें बुलानेकी जरूरत मालूम हुई तो तार करूँगा।

आशा है तुम्हें वहाँकी जलवायु माफिक आ रही होगी। मणिबहन हजीरा गई है। राधा पहलेसे काफी अच्छी है, ऐसा कहा जा सकता है। कीकीबहन भी अच्छी है।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र ( जी॰ एन॰ २८४७) की फोटो-नकलसे।
  1. यह जिस पत्रका उत्तर है वह ३ मईंका था; उसके बादका रविवार ४ मईको था।
  2. देखिए "पत्र : जमनालाल बजाजको", २–५–१९२४ था उसके पश्चात्।