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परिशिष्ट


(३) जो भी निर्योग्यताएँ शेष रह जायें उनको दूर करनेके सम्बन्धमें बातचीत की जा सकेगी।

यह तीसरा मुद्दा गृहमन्त्री के सचिवको १६ जून, १९१४को लिखे गये एक पत्र में साफ तौरसे रख दिया गया था। श्री गांधीने अपने विदाई भाषणोंमें, जो समस्त संसारमें तार द्वारा भेजे गए थे, पहले मुद्देपर बार-बार जोर दिया था। उदाहरणके लिए उन्होंने जोहानिसबर्ग में कहा था : जो समझौता हुआ है उसमें यह सिद्धान्त स्थिर किया गया है कि कानूनमें प्रजातीय भावनाका दोष कभी नहीं आयेगा। इसमें तो ब्रिटिश संविधानके उस आशय के सिद्धान्तकी पुष्टि की गई है। मैं समझता हूँ कि समझौते में गलतफहमी की कोई गुंजाइश नहीं रही है। समझौता जहाँ इस अर्थ में अन्तिम है कि उससे एक बड़े संघर्षका अन्त हुआ है, वहाँ वह इस अर्थ में कि उसके द्वारा भारतीयोंको वह सब मिल जाता है, जिसके वे अधिकारी हैं अन्तिम नहीं भी है। ये शेष बचे प्रतिबन्ध हटाने होंगे।"

श्री गांधीका सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण वक्तव्य, जिसे इस विषयपर उनका अन्तिम कथन माना जा सकता है, दक्षिण आफ्रिकासे विदाईके समय रायटरको दिया हुआ उनका सन्देश है। उसमें निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण अंश था : जनरल स्मट्सने वर्तमान कानूनोंको, न्यायोचित ढंगसे निहित अधिकारोंका समुचित ध्यान रखते हुए, अमलमें लाने का जो वचन दिया है, उससे भारतीय समाजको साँस लेनेका समय मिल गया है। लेकिन ये कानून स्वतः ही सदोष हैं, अतः उन्हें भूतकालकी भाँति भविष्य में भी दमनका यन्त्र और भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकासे अप्रत्यक्ष रूपमें बाहर निकालने का साधन बनाया जा सकता है। भविष्य में भारतीयोंके यहाँ आनेपर लगभग रोक-सी रहेगी और वे राजनैतिक सत्तासे लगभग वंचित रहेंगे—हमने यह छूट यहाँके लोगोंके जातीय विद्वेषको देखते हुए ही दी है। हमसे ज्यादासे ज्यादा इतनी ही अपेक्षा की जा सकती थी। इन दो बातोंपर आश्वस्त किये जानेपर मेरा निवेदन यह है कि हमें व्यापार, अन्तर्प्रान्तीय प्रवास और अचल सम्पतिके स्वामित्वका पूरा अधिकार शीघ्र ही पुनः दे दिया जाना चाहिए।"[१]

श्री एन्ड्रयूजने कहा कि इन उद्धरणोंसे यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि श्री गांधी दक्षिण आफ्रिकासे पूर्णतः सुनिश्चित समझौता करके ही आये थे। प्रवासपर रोक रहेगी, यह मानते हुए ही जनरल स्मट्सने यह बात स्वीकार की थी कि कोई भी प्रजातीय प्रतिबन्ध नहीं लगाया जायेगा और सभी मौजूदा निहित अधिकार सुरक्षित रहेंगे। उन्होंने यह बात भी स्वीकार की थी कि भविष्य में भारतीय समाज अन्तर्प्रान्तीय प्रवासपर प्रतिबन्ध जैसी अन्य निर्योग्यताओंको भी हटवानेका प्रयत्न करनेके लिए स्वतन्त्र होगा।

अपना वक्तव्य समाप्त करते हुए श्री एन्ड्रयूजने कहा कि श्री डंकनकी व्याख्या बिलकुल समझ में नहीं आती और श्री गांधीकी भविष्यवाणी सच होती जान पड़ती

  1. देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ४९४।