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यदि मुसलमान या हिन्दू अलग हो जायें

यदि हिन्दू और मुसलमान दो बड़े सम्प्रदायोंमें से एक अहिंसा सम्बन्धी इकरारको तोड़ दे तो मैं यह मानता हूँ कि अकेले एकके लिए संघर्षको चलाना असम्भव तो नहीं, किन्तु बहुत ही कठिन अवश्य हो जायेगा। उसे अहिंसाकी नीतिमें अटूट विश्वास रखना होगा। यदि किसी भी एक स्मप्रदायके मनमें यह बात बैठ जाये कि भारत हिंसात्मक उपायोंसे पीढ़ियोंतक भी स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकता, तो वह अपने अविचल अहिंसात्मक, अर्थात् प्रेमपूर्ण आचरणसे अन्य सभी विरोधी पक्षोंको अपनी ओर खींच सकता है।

यदि दोनों मुझे छोड़ दें

यदि दोनों पक्ष मुझे छोड़ देते हैं, तो मैं हमेशाकी तरह शान्त रहूँगा और यह बिलकुल निश्चित है कि अहिंसाका अपना प्रचार जारी रखेंगा। तब मुझपर प्रतिबन्ध नहीं रहेंगे, जैसे कि आज हैं। तब मैं अपने सिद्धान्तपर जोर दूँगा; जब कि आज मैं उसे केवल नीतिके ही रूपमें चलाता प्रतीत होता हूँ।

जुर्म गढ़े जा रहे हैं।

एक सज्जनने नीचे लिखा नोटिस अनुवाद करके भेजा है, जो रावलपिण्डी छावनीके मजिस्ट्रेटकी ओरसे कुछ स्वयंसेवकोंके नाम जारी किया गया था :

मेरा ध्यान इस ओर दिलाया गया है कि तुमने रावलपिण्डी छावनी में हो रहे सरकार-विरोधी प्रचारमें भाग लिया था (या तुम वहाँ उपस्थित थे)। छावनी में वही लोग रह सकते है जो सरकारके खैरख्वाह हों। इसलिए तुम्हें चेतावनी दी जाती है कि यदि भविष्यमें तुम्हें किसी ऐसी सभामें उपस्थित पाया गया तो तुम्हें छावनीकी हदसे बाहर कर देनेका अनुरोध किया जायेगा।

इस तरह इस मजिस्ट्रेटने उन सभाओंमें उपस्थित होना तक जुर्म करार दे दिया है, जिनमें सरकार-विरोधी प्रचार होता है। सरकार-विरोधी प्रचार तो क सहयोगी तक करते हैं। इस तरहके आदेशोंकी भरभारसे तो सरकार खुद अपने ही बोझसे दबकर टूट जायेगी, जैसे कि मोटापेसे पीड़ित व्यक्ति अन्तमें चलने-फिरनेसे लाचार हो जाता है।

निवासके अधिकारपर प्रतिबन्ध

एक मित्रने नीचे लिखा नोटिस भेजा है, जो नोआखलीके जिला मजिस्ट्रेटकी ओरसे १६ फरवरीको जारी किया गया था :

मुझे विश्वस्त रूपसे यह सूचना मिली है कि नोआखली नगरमें "स्वराज्य आश्रम" नामकी एक इमारतका उपयोग तथाकथित स्वयंसेवकोंको शरण देनेके लिए किया जा रहा है , और इन स्वयंसेवकों का सम्बन्ध एक ऐसी संस्थासे है जो दण्डविधि संशोधन अधिनियमके अधीन गैरकानूनी घोषित कर दी गई है।

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