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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
मुझे विश्वस्त रूपसे यह भी सूचना मिली है कि जिस भूमिपर यह इमारत है उसके मालिक बाबू नलिनीकान्त मुखर्जी हैं और यह इमारत उनकी अनुमतिसे पहले बाबू प्रमथनाथ सेनगुप्तके अधिकारमें थी, और बादमें उसे तथाकथित स्वयंसेवकोंके निवासमें परिवर्तित कर दिया गया है।
इसलिए मैं नोआखलीका जिला मजिस्ट्रेट ओ॰ एम॰ नारायण बाबू नलिनीकान्त मुखर्जी, बाबू प्रमथनाथ सेनगुप्त और स्वयंसेवकों तथा उन अन्य लोगोंको, जो इस समय इस इमारतका या जिस भूमिपर वह है उसको उपयोगमें ला रहे हैं या उसमें रहते हैं, इस बातके लिए तलब करता हूँ कि वे १८ फरवरी, १९२२को दोपहर १२ बजे नोआखलीके जिला मजिस्ट्रेटको अदालतमें यह बतायें कि दण्ड प्रक्रिया संहिताकी धारा १४४ के अधीन इस आशयका एक आदेश क्यों न जारी कर दिया जाये कि उक्त स्वयंसेवकगण इस इमारत या भूमिको किसी भी प्रयोजनके लिए उपयोगमें नहीं ला सकते। इस तरहके आदेशका आधार निम्नलिखित है :
एक तो यह कि उक्त स्वयंसेवकगण एक गैर-कानूनी संघसे सम्बन्ध रखते हैं और इसलिए यह इमारत एक गैर-कानूनी प्रयोजनके लिए उपयोगमें लाई जा रही है, और
दूसरे यह कि इस इमारतको जो स्वयंसेवक उपयोगमें ला रहे हैं उनका आचरण पड़ोसके लोगोंके लिए क्षोभका कारण है और सार्वजनिक शान्तिके लिए एक खतरा है।

मुझे नहीं मालूम कि इस नोटिसकी सुनवाईके दिन क्या हुआ। लेकिन यह बात ध्यान देनेकी है कि चूंकि स्वयंसेवक इस इमारतको "किसी भी प्रयोजनके लिए" उपयोगमें नहीं ला सकते, इसलिए इससे यही अर्थ निकलता है कि वे उसे अपनी गतिविधियों के लिए ही नहीं, बल्कि निवासतक के लिए भी उपयोगमें नहीं ला सकते। यह नोटिस जिस आधारपर जारी किया गया है वह आधार भी नोटिसकी तरह ही विचित्र है। मजिस्ट्रेटका तर्क है कि चूंकि स्वयंसेवक एक गैर-कानूनी संघसे सम्बन्ध रखते हैं, इसलिए जिस मकानमें वे रह रहे हैं वह एक गैर-कानूनी प्रयोजनके लिए उपयोगमें लाया जा रहा है। इससे नतीजा यही निकलता है कि किसी भी व्यक्तिका अपने मकानको किसी अन्य व्यक्तिको किरायेपर देना खतरेसे खाली नहीं है। भला वह कैसे जान सकता है कि कोई व्यक्ति आगे-पीछे चोर या बाकायदा राजद्रोह फैलानेवाला निकल आयेगा।

दूसरा कारण तो पहलेसे भी अधिक हास्यास्पद है। जिन स्वयंसेवकोंका अपराध केवल यह है कि वे दण्ड-विधि संशोधन अधिनियमकी खुली अवज्ञा करते हैं, उनका आचरण अपने पड़ोस के लोगोंके लिए क्षोभका कारण कैसे हो सकता है, और यदि वे उनके लिए क्षोभका कारण बनते हैं तो इस तरहके स्वयंसेवकोंको जेलमें बन्द क्यों नहीं कर दिया जता? मजिस्ट्रेटकी कार्रवाई तो लगभग ऐसी ही है जैसे कि किसी