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चोरको खुला छोड़ दिया जाये और सर्वसाधारणपर यह जिम्मेदारी लादी जाये कि वह उसे पनाह न दे ताकि वह इस रूपमें दण्ड पा जाये। यह दरअसल लोगोंको 'लिंच कानून' की[१] शिक्षा देना है।

हमलेके लिए भड़काना

बंगाल चेम्बर ऑफ कॉमर्सके अवकाश प्राप्त प्रधानने[२] ऐसी अन्धेरगर्दी (लिंच कानून) के पक्ष में एक बहुत ही धृष्ट घोषणा की है। उन्होंने पाखण्डका नकाब उतार फेंका है और जातीय श्रेष्ठताका राग अलापा है। उन्होंने नरमदलवालोंको उनके कर्त्तव्योंका निर्देश किया है और अंग्रेजोंसे कहा है कि उन्हें "हमला होनेपर उसका मुँह-तोड़ जवाब देना चाहिए।" हमने जिस प्रणालीको स्वीकार किया है, उसे देखते हुए हम इस ढिठाईका उत्तर देने में असमर्थ हैं। बिलकुल उत्तेजित न होना ही इसका उत्तर हो सकता है। फिलहाल मुझे बंगाली दोस्तोंसे यही कहना है कि वे स्वेच्छासे, सोचसमझकर, अपनी शक्तिका एहसास करते हुए शान्त रहें, घबरायें नहीं और प्रतिरोध न करें। क्रोध के वशीभूत होकर सविनय अवज्ञा शुरू करना केवल एक अन्तविरोधी आचरण ही नहीं होगा, बल्कि शत्रुके हाथों में खेलना भी होगा। नोआखलीके जिला मजिस्ट्रेट और बंगाल चेम्बर के अवकाश प्राप्त प्रधानके भड़कावेमें आनेवाले अंग्रेजोंको मनमानी करने दीजिए। हमारा कार्यक्रम यह है कि हमें प्रहारोंको, प्रतिकार किये बिना, शोभनीय ढंगसे झेलना है, और इस तरह जिला मजिस्ट्रेट और चेम्बरके प्रधान, दोनोंको निरस्त्र कर देना है। प्रतिक्रिया के अभाव में यह रोष अपने आप ठण्डा पड़ जायेगा।

ग्वालियर राज्य और गांधी टोपी

एक सज्जनने मुझे ग्वालियर राज्य द्वारा जारी की गई विज्ञप्तिकी प्रति भेजी है, जिसपर पेशी अफसर के हस्ताक्षर हैं। अखबारके लगभग पाँच कॉलम इससे भरे हुए हैं। यह खादी के विषय में एक अच्छा-खासा लेख ही है। उसमें कहा गया है कि ग्वालियर के बाशिन्दे खादी शौकसे पहनें, वे तो उसे बराबर पहनते चले आ रहे हैं और कपड़े की महँगाईको देखते हुए लोगोंका खादी पहनना कुछ अजब भी नहीं है। पर लोगों को यह चेतावनी भी दी गई है कि वे खादीपर होनेवाले व्याख्यानोंको सुनने न जायें; अन्त में 'गांधी टोपी' पहननेकी मनाही की गई है। मूल हिन्दी लेखके शब्द इस प्रकार हैं :

यहाँ यह बता देना जरूरी है कि आजकल खादीकी एक खास किस्मकी टोपी चलनमें आ गई है। यह किश्तीनुमा है और इसकी तह की जा सकती है। हकीकत यह है कि ये टोपियाँ कपड़े की बचतके खयालसे नहीं बल्कि एक खास पार्टी के निशान के रूप पहनी जाती हैं और खास किस्मके खयालातोंके साथ उसका इतना गहरा ताल्लुक हो गया है कि माना यह जाता है कि
  1. भीड़ द्वारा नियुक्त अवैध अदालत जो संदिग्ध व्यक्तिपर आनन-फानन मुकदमा चलाकर सजा सुना देती है।
  2. सर रॉबर्ट वाटसन स्मिथ।