पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६५
विदेशों में प्रचार
हिस्सोंसे मेरा जो पत्र-व्यवहार होता रहता है, उससे यह स्पष्ट होता है कि दुनिया भर में भारतके मामलोंमें आज जितनी दिलचस्पी ली जाती है उतनी पहले कभी नहीं ली गई। इससे यह सिद्ध होता है कि हमारा कष्ट सहन जितना अधिक होगा उनका ध्यान इस ओर उतना ही अधिक आकृष्ट होगा। इसलिए यहाँकी राजनीतिक स्थितिके सम्बन्धमें सच्ची खबरें प्रचारित करनेका सबसे बढ़िया तरीका तो यही है कि कांग्रेसका काम अधिक शुद्ध, अधिक सुसंगठित रूप में चलाया जाये और कष्ट सहनकी भावना अधिक विकसित की जाये। इससे लोगोंको जिज्ञासा ही नहीं बढ़ती; स्थितिकी असलियतको तथा उसकी भीतरी बातोंको समझ लेनेकी उत्कण्ठा भी बढ़ती है।
बारडोली,आपका विश्वस्त,
२२ फरवरी, १९२२मो॰ क॰ गांधी

मुझे इस सम्बन्ध में जो कागज पत्र दिये गये थे, तथा उसके पक्ष और विपक्षमें जो-जो दलीलें पेश की गई थीं, मैंने उन सबको पढ़ा और सुना; परन्तु फिर भी मेरी यह राय जहाँकी-तहाँ है कि कमसे कम आज भारत के बाहर कोई समाचार अभिकरण बनानेकी आवश्यकता नहीं। हम यह जरूर चाहते हैं कि सारा संसार हमारे पक्ष में हो; परन्तु विदेशों में अभिकरणों द्वारा प्रचार कार्य करते रहनेसे हम यह काम नहीं कर सकते। हम तो सिर्फ उन्हीं लोगोंको सही खबरें भेज दिया करें जो जिज्ञासा रखते हैं। यदि कोई बाहरी मुल्क किसी देश विशेषकी किसी खास हलचलके हालात जानने के लिए अपने खुदके साधन नहीं रखता, तो मेरी दृष्टिमें यह इस बातका सबूत है कि उसे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। कोई १५ महीनोंसे हम लन्दनमें बिना किसी अभिकरणके ही काम चला रहे हैं। परन्तु मैं कहता हूँ कि वहाँ १५ महीने पहले हमारी इस विषयमें जो स्थिति थी आज उससे घटकर नहीं है। यहाँ खुद भारतमें हमने जो ठोस काम किया है उसीके फलस्वरूप और उसी हदतक हमारी स्थिति विदेशों में पहलेसे बेहतर है। भारतके मामलोंमें दिलचस्पी लेनेवाले लोगोंकी संख्या आज जितनी कभी नहीं रही इसलिए उनके प्रति हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम उनतक सही-सही खबरें पहुँचा दिया करें, बस इससे ज्यादा हमें कुछ नहीं करना है। मेरे सामने इटलीके एक समाचारपत्रके सम्पादकका पत्र है। वे लिखते हैं कि इटलीके लोग भारतके इस आन्दोलनमें गहरी दिलचस्पी लेते हैं, और इसीलिए इटली के समाचारपत्र भारत के मामलोंका ज्ञान इटली के लोगोंको कराते हैं। जिसे मैं स्वाभाविक और अपने-आप विकसित होनेवाला आन्दोलन कहता हूँ वह यही है। परन्तु अगर हम इस खबर के बलपर वहाँके लोगोंकी दिलचस्पी बढ़ानेकी दृष्टिसे इटली में कोई भारतीय दफ्तर खोलकर बैठ जायें तो यह अतिरेक कहलायेगा और उससे काम बनने के बजाय बिगड़ेगा ही। इसलिए अपनी ही शक्तिके बारेमें यह मानते हुए कि वह अपना प्रभाव स्वयं प्रकट करेगी, अपने हित साधनकी ओर दृष्टि रखना हमारे लिए अधिक अच्छा होगा।

२३–५